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________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. २९ • हवे पांचस्थावरना पांचदंडक कहेछे. पृथ्वी, पाणी, तेज, वनस्पति, ए च्यार ने सरीर ऋण उदारिक, तेजस ने कार्मण, अने वायराने सरीर च्यार उदा रिक, वैक्रेय, तेजस ने कार्मण. अवघेणा, प्रथ्वी, पाणि, तेउ, बाउ, ए च्यारेनी जघन्य ने उत्कृष्टी अंगुलना असंष्यातमो भाग. अने वनस्पतिनी जघन्य अंगुलनो असंख्यातमो भाग. उत्कृष्टि हजार जोजननी झाझेरी कमल प्रमुखनी. संवेण एक छेवटु. संठाण एक हुंड. पांचे ना संठाण कहे छे. प्रथवीनुं संठाण मसुरनी दाल तथा चंद्रमाने आकारे, पाणीनं संठाण पाणीना परपोटाने आकारे, तेनुं संठाण सायना भाराने आकारे, वायरानुं संठाण धजापताकाने आकारे, वनस्पतिनुं संठाण नाना प्रकारनुं कषाय च्यारे. संज्ञा च्यारे, लेस्या, पृथ्वी, पाणी, वनस्पति ने अपर्याप्ता वेला च्यार पहेली अने पांचे ने लेस्या त्रण पहेली. इंद्री एक कायानी. समुद्घात पृथ्वी पाणी तेउ वनस्पति ने ३ वेदनी कषाय, मारणांतिक अने वागराने समुद्घात च्यार वैक्रेयनी वधी संज्ञी • पांचे स्थावर असंज्ञी. वेद एक नपुंसक, पर्याचार. आहारपर्या, शरिरपर्या, इंद्रीपर्पा, स्वासेोस्वासपर्या द्रष्टि एक मिध्यात. दर्शन एक अचक्षुदर्शन. ज्ञान नथी. अज्ञान वे मतीअज्ञान, श्रुतअज्ञान. जोग पृथ्वी, पाणी, तेज, वनस्पतिने त्रण उदारिक, उदारिकन मिश्र, कार्मण कायजोग, अने वायराने पांच ते वैक्रेय, वैक्रेयना मिश्र, ए वे वध्या. उपयोग त्रण वे अज्ञान, एक अचक्षुदर्शन, एवं त्रण. तहा तिमज आहार ले ज० त्रण दिसनो उ० छ दिसनो ते वल वे प्रकारने आज ने रोम कवलवजिने तथा ३ प्रकारनो ते सचेत, अचेत ने मिश्र उबवाय ते आवीने उपजे, •
SR No.022129
Book TitleJain Siddhant Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAjramar Jain Vidyashala
Publication Year1928
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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