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________________ २८ लघु दंडक. जाणवा. वेद वे स्त्री ने पुरुष, प्रजा ५ भाषामन भेला बांधे. दृष्टि त्रण, दर्शन त्रण, केवल दर्शन एक नही. ज्ञान त्रण. मति ज्ञान, श्रुत ज्ञान ने अवधि ज्ञान. अझान त्रण. मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान, विभंगअज्ञान. जोग इग्यार, च्यारमनना, च्यार वचनना, त्रण कायाना, वैक्रेय वैकेयनो मिश्र, कार्मण कायजोग, एवं इग्यार. उपयोग नव. त्रण ज्ञान, त्रण अज्ञान, त्रण दर्शन. एवं नव, तहा तिमज आहार ले. जघन्य अने उत्कृष्टो छ दिसनो आहार ले. वली बे प्रकारे आहार ले, ओजआहार ने रोम आहार. ते पण शुभ ने अचेत आहार. उववाय ते आवीने उपजे बे दंडकनो. मनुष्यने तिर्यचनो. स्थिति भवनपतिमां दक्षण दिसना असुरकुमारनी, ज० दस हजार वरसनी उ० एक सागरनी, तेहनी, देवीनी ज० दस हजार वरसनो, उ० साढा त्रण पल्यापमनी तेहना नवनी कायना देवतानी, ज० दस हजार वरसनी, उ० दोड पल्योपमनी, तेहनी देवीनी ज० दस हजार वरसनी. उ० पोणा पल्यनी, उत्तर दिसना असुरकुमारनी, स्थिति ज० दस हजार वरसनी, उ० एक सागर झाझेरानी, तेहनी देवीनी ज० दश हजार वर्षनी, उ० साडा चार पल्यापमनी, तेहना नवनिकायना देवतानी ज० दसहजार वरसनी, उ० बे पल्यापम देसेउंणी, तेहनी देवीनी ज० दस हजार वरसनी, उ० एक पल्यापम देसे उणीनी समोहिया मरण अने असमाहिया मरण ए वे मरण लाभे. चवण ते चविने पांच दंडकमां जाय. प्रथ्वी, पाणी, वनस्पति, मनुष्य ने तियेच ए पांचमांजाय. गइकहे. मरीने वे गतिमां जाय मनुष्यने तिचमां. आगइ ते आवे पण बेगतिनो, मनुष्यने तिर्यचनो, प्राण दस लाभे जोग त्रण. इति दस भवनपतिना दस दंडक संपूर्ण.
SR No.022129
Book TitleJain Siddhant Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAjramar Jain Vidyashala
Publication Year1928
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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