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________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. २७ सातमी सुधी गर्भजतिर्वचने गर्भज मनुष्यनां आवी उपजे स्थिति पहेली नरके जघन्य दस हजार वरसनी, उत्कृष्टी एक सागरनी बीजी नरके ज० एक सागरनी उ० त्रण सागरनी. त्रीजी नरके ज० त्रण सागरनी, उ० सात सागरनी. चोथी नरके ज० सात सागरनी, उ० दस सागरनी. पांचमी नरके जं० दस सागरनी, उ० सतर सागरनी छठी नरके ज० सतरसागरनी, उ० बावीस सागरनी. सातमी नरके ज० बावीस सागरनी, उ० date सागरनी. समोहिया मरण ने असमेोहिया मरण वे मरण छे. चवण ते नारकी चविने पेहेलीथी छठी सुधिना वे दंडकमां जाय, मनुष्यने तिर्यचमां अने सातमी नरकना एक दंडकमां ते तिचमां जाय. गइ कहेतां पेहेलीथी मांडी छठी सुधिना नारकी मरीने बेगतिमां जाय ते. मनुष्यने तिर्यचमां जाय आवे पण वेगतिना मनुष्य ने तिर्यचना. सातमी नरकना नारकी वे गतिमांथी आवे मनुष्य ने तिचना ने जाय एक तिर्यच निगतिमां प्राणदस लाभे जे ग त्रण मन वचन ने काथाना एत्रण. ए प्रथम दंडक नारकीनो संपूर्ण. हवे दस भवनपतिना दस दंडक कहे छे. तेहमां सरीर त्रण. वैक्रेय, तेजस, कार्मण, अवघेणा भवन- पतिनी. जघन्य अंगुलनो असंख्यातमो भाग, उत्कृष्टी सातहाथनी, अने उत्तर वैक्रेय करे तो जधन्य अंगुलनो संख्यातमो भाग, उत्कृष्टी लाख जोजननी. संवेण नथी. संठाण एक समचउरंस संठाण. कषाय - चारे पण देवताने लाभ घणो संज्ञाचारे पण देवताने परिग्रह संज्ञा घणी. लेस्था च्चार. कृष्णलेस्था, नोललेस्या, कापुतलेस्या, तेजुलेस्या. इंद्री पांच छे. समुद्घात पांच. वेदनी, कषाय, मरणांतिक, वैक्रेय ने तेजस संज्ञी, असंज्ञी वे
SR No.022129
Book TitleJain Siddhant Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAjramar Jain Vidyashala
Publication Year1928
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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