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जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. कीर्ति देवोनो वास छे. ए ६ देवीओ भवनपतिनी जातिनी जाणवी. तेहर्नु आयुष १ पल्यनुं छे. इति ९ मो द्रह द्वार समाप्तं.
हवे दशमो सलिला द्वार कहे छे. सलिलाओ क० बुद्विप मध्ये १४५६०९० नदियो छे ते मांहि पद्म द्रहने पूर्व दिशिने तोरणेथी . गंगा नदी निकळी ५०० जोजन पूर्व साहमी गइ तिहां गंगा वर्तन कुट छ तिहां अफलाणी तिहांथो दक्षिण दिशे चालि ते ५२३ जोजन ने ३ कळा दक्षिण दिशे पर्वत उपरे गइ, तिहां महोटा घडाना मुखमांथी पाणी पडे तेम मोतिना हार सरिखं महा मघरमच्छना मुखने आकारे प्रनालि जीभोकामांथी कांइक अधिक १०० जोजन उंचेथी पाणि पडे छे. ते जीभीका अर्द्ध जोजननी लांबी छे अने सवाछ जोजननी पहोळी छे. प्रनालि मघरमच्छना विकस्या मुखने संठाणे छे सर्व वज्रमय छे, आछी तेजवंत छे, ते मांहिथी पाणि पडे छ, तिहां १ महोटो गंगा प्रपात नामा कुंड छे, ते कुंड ६० जोजननो लांबो ने पहोळो छे. १० जोजननो उंडो छे, ते कुंडनी रुपामय उपकंठपालि छे, वज्रपाषाणमय तळं छे, सुखे मांहि उत्तरिये, नाना मणिरत्ने करि कांठो बांध्यो छे, वज्रमय तल्लं छे सुव
नो मध्य भाग छ, रुपानि वेलु छे. गंभिर शितळ जळ छे, अने ते कमळ पानडे छायु छे, घणा उत्पल कमल छे, कुमुद, नलीन, पुंडरिक, शतपत्र, सहस्रपत्र, कमळ घणा छे, गंगा कुंडने ३ बारणा छे, त्रण दिशे पगथीया छे, पूर्व दिशे, दक्षिण दिशे, पश्चिम दिशे. पगथीयानो वर्ण पाषाणना जेवो छे. तेहनो उपल्या भाग रिष्ट रत्नमयछे, वैरुलि रत्नमय स्तंभा छे, सोना रुपाना पाटिया छे, लोहिताक्ष रत्नमय खिला छे, वज्रमय सांधो जडि छे, मणिना आलंबन पकडवा ने पगथिया आगळे प्रत्येक प्रत्येक तोरण छे. ते मणि सुवर्ण मुक्ता