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________________ १६२ खंडा जोयणना बोल. फल हारे करि शोभे छे. ते गंगा प्रपात कुंडनी बचे १ गंगा द्विप नामा द्विपो कह्यो ते ४ जोजननो लांबो ने पहोलो छे. बे कोश पाणि थकि उंचो छे. सर्व रत्नमय छे. गंगा द्विप उपरे घj रमणिक .छे ते उपर १ गंगा देवीनुं भवन का ते १ कोशन लांबु ने अर्द्ध कोशनुं पहोलु छे अने देशे उणु कोश उंचुं छ. अनेक स्तंभा छे. तेहनो वर्णव श्रीदेवीनि परे जाणवो. गंगानुं शास्वतुं नाम छे, ते गंगा प्रपात कुंडना दक्षिण दिशना बारणाथी गंगा नदी निकळीने उत्तर भरत मध्ये वहेति थकि ७ हजार नदी साथे खंड प्रपात गुफाने वैताढ पर्वतने हेठे थइने, दक्षिणाई भरत मांहि वहेति बिजी ७ हजार नदी भळति थकि सर्व १४ हजार नदीने परिवारे जगती ने भेदिने पूर्वना लवण समुद्र मांहि भळी. एमज सिंधु पण पश्चिम दिशे जाणवि. सलिलाउं क. जंबुद्विप मांहि १४५६०९० नदियो छे तेहनो विवरो कहे छे. गंगा, सिंधु, रत्ता, रतवइ, ए ४ नदीयो मूल थकि निकळता सवाछ जोजननी पहोळीओ अने अर्द्ध गाउनि उडियो छे. छेहडे समुद्रमा भळतां साडीबासठ जोजननी पहाळि अने अढि जोजननि उडि छे. एकेकिनो चौद चौद हजार नदियोनो परिवार जाणवो. सर्व मळीने १४ चोकुं ५६००० हजार नदियो थइ. हवे रोहिया, रोहितंसा ए २ नदि हेमवय क्षेत्रमा छे अने सुवर्ण कुला ने रुपकुला ए २ नदीयो हिरणवय क्षेत्रमा छे एवं ४ नदी निकलतां साडा बार जोजननी पहोळी अने १ गाउनी उडि छे. छेडे समुद्रमां भळतां सवासो जोजननी पहोळी अने अढि जोजननी उंडि छे. एकेकिनो अठ्याविश अठ्याविश हजार नदीयोनो परिवार जाणवो. सर्व मळोने एक लाख ने १२ हजार नदीयो थइ. हवे हरिकंता, हरिसलिला, ए वे नदीयो इरिवास क्षेत्रमा छे, अने नरकंता, नारिकंता, ए २
SR No.022129
Book TitleJain Siddhant Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAjramar Jain Vidyashala
Publication Year1928
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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