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जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. ११३ अणुप्पेहा कहिए. - हवे धर्म ध्याननी पहेली अणुप्पेहा कहे छे. एकच्चागुप्पेहा ते केहने कहिए? जीव असंख्यात प्रदेसी अरुपी सदास उपयोगी ते चैतन्यरूप एहवो एक माहरोआत्मा निश्चयनये छे तेम सर्वआत्मा निश्चयनये एवाज छे, अने व्यवहारनये आत्मा अनादिकालनो अचैतन्य जड वर्णादि २० रूप सहित पुद्गलनो संयोगीथको त्रस ने स्थावररूप लेइने अनेकनृत्यकारनटुवानीपरे अनेकरूपे अनेक छांदे प्रवर्ते छे. ते त्रसनो त्रसरूपेप्रवर्ते तो जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्टो बेहजार सागर झाझेरासुधी रहे.अनेस्थावरनो स्थावरपणे प्रवर्ते तोजघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्टो अनंती उत्सर्पणीअवसर्पणी कालथी. क्षेत्रथी अनंतालोकममाण अलोकना आकाशप्रदेश थाय तेटलाकालचक उत्सर्पणी अवसर्पणी जाणवी.तेहना असंख्याता पद्गल परावर्त्तन थाय.अंगुलने असंख्यातमे भागे आकास प्रदेश आवे तेटला असंख्याता पुद्गल परावर्तन थाय. स्थावर मध्ये पुद्गल लइ खेल्यो ए व्यवहार नयथी जीव जाणीए. वली त्रस स्थावर मध्ये रह्यो थको स्त्रीपुरुष नपुंसक वेदे पुदलने संयोगे खेल्यो, प्रवयों, अनेक रुपो धारण कर्या. ते कहे छे. कोइक प्रस्तावे देवीपणे भवनपत्यादिकथी इसानदेवलोकसुधी इंद्रनी इंद्राणी सुरुपवंती अपसरा थई. जघन्य १० हजारवरस उत्कृष्टा५५पल्योपम देवांगनानेरुपे अनंतिवारजीवखेल्यो.देवतापणेभवनपत्यादिकथीजाव नवग्रैवेयकसुधीमहधिकदेवपणे महाशक्तिवंत इंद्रादिक लोकपालप्रमुखपणे रुपवंत देदीप्यमान वंछितभोग संयोगपणे प्रवयो. जघन्य १० हजारवर्ष उत्कृष्टा३१ सागरोपम एम अनंतीवार भोगी थयो. इंद्र महाराजे एक भवमांहि ७ पल्योपमनी देवी, बाविसकोडाक्रोड पंचासी लाख क्रोड, एकोतेर हजार क्रोड, चारसे अठ्यावीस क्रोड,