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________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. १४३ करी सहित होय तेहने धर्मदेव कहिये. अढार दोष रहित ने बार गुणेकर सहित हो तेहने देवाधि देव कहिये. अढार दोष ते कहे छे. अज्ञान १, क्रोध २, मद ३, मान ४, माया ५, लोभ ६, रति ७, अरति ८, निद्रा ९, शोक १०, असत्य ११, चोरी १२, मछर १३, भय १४, माणिवध १५, प्रेम १६, क्रिडा प्रसंग, १७ हाय १८. ए १८ दोष रहित अने १२ गुणे करि सहित ते बार गुण कहे छे. जिहां जिहां भगवंत उभा रहे बेसे समोवसरे तिहां तिहां दश बोल सहित ते भगवंतथी बार गुणो उँचो तत्काल अशोक वृक्ष थइ आवे स्वामिने छांयडो करे १. भगवंत जिहां जिहां समोवसरे तिहां तिहां पांच वर्णा अचेत फुलनी दृष्टि थाय ढवण प्रमाणे ढगला थाय २. भगवंतानी जोजन प्रमाणे वाणी विस्तरे सहुना मननो संशय हरे ३. भगवंतने चोविश जोड चामर विझाय ४. स्फटिक रत्नमय पादपीठ सहित सिंहासन स्वामिने आगले थाय ५. भामंडल अंबोडाने ठेकाणे तेज मंडल बिराजे दिशो दिशना अंधकार टाळे ६. आकाशे साडा बार क्रोड गेबि वाजां वागे ७. भगवंतनी उपरे त्रण छत्र उपरा उपरि बिराजे ८. अनंतज्ञान अतिशय ९. अनंत अचअतिशय परम पूज्यपणं १०. अनंत वचन अतिशय ११. अनं० अपायापगम अतिशय ते सर्व दोष रहितपणु १२. ए १२ गुणे करी सहित तथा चोत्रीस अतिशय पांसि वचनातिशयआदे दइने अनंतगुणेकरी सहित होय तेहने देवाधिदेव कहिये. भाव देव ते केहने कहीए ? भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी, वैमानिक ए चार जातिना देवताने भावे प्रवर्ते छे तेहने भाव देव कहिये. हवे त्रिजुं उबवाय द्वार कहे छे. भविय द्रव्य देवमां, मनुष्य तिर्यच जुगलीया तथा सर्वार्थसिद्ध ए ३ ठाम वर्जिने बाकि सर्व
SR No.022129
Book TitleJain Siddhant Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAjramar Jain Vidyashala
Publication Year1928
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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