SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४४ देवना पांच बोल. ठामना आवि उपजे.नर देवमां चार जातिना देवताने पहेली नर्क ए ५ ठामना आवी उपजे. धर्मदेवमां, छठी सातमी नर्क तेउ वाउ मनुष्य तिर्यच जुगलीया ए ६ ठाम वर्जिने शेष सब ठामना आवि उपजे. देवाधिदेवमां पहेली बीजी त्रिजी नर्कने किलविषी वर्जिने वैमानिक देवना आवि उपजे, भावदेवमां तिर्यच पंचेंद्रिय ने संज्ञि मनुष्य ए २ ठामना आवि उपजे. - हवे चो) स्थिति द्वार कहे छे. भविय द्रव्य देवनी जघ० अंत० उन्० ३ पल्यनि. नरदेवनी जघ० सातसें वर्षनी उत्० चौरासी लाख पूर्वनि. धर्म देवनी जघ० अंत० उत् देशे उणी पूर्व कोडिनी देवाधि देवनी जघ० बहुतेर वर्षनी उत्० ८४ लाख पूर्वनी. भाव देवनी जघ० दश हजार वर्षनी उत्०३३ सागरनी. हवे पांचमुं रूद्धि तथा विक्रुवणा द्वार कहे छे भविय द्रव्य देवमां जेहने वैक्रेय लब्धि उपनि होय तेहने,नरदेवने तो होयज, धर्म देवमां जेहने होय तेहने,भाव देवने तो होयज. ए४ वैक्रेय रूप करे तो ज० १, २,३, उ० संख्याता करे शक्ति तो असंख्याता रुप करवानी छे पण करे नहि. देवाधिदेवनी शक्ति घणी छे पण करे नहि. हवे छटुं चवण द्वार कहे छे भविय द्रव्य देव चवि देवता थाय. नर देव चवि नर्के जाय. धर्म देव चवी वैमानिक तथा मोक्षमां जाय. देवाधिदेव तो मुक्ति जाय. भाव देव चविने पृथ्वी पाणी वनस्पति बादरमां ने गर्भज मनुष्य तिर्यंचमां जाय. हवे सातमु संचिठणा द्वार कहे छे. सांचठणा ते देवनो देवपणे रहे तो केटलो काळ रहे ते कहे छे. भविय द्रव्य देवनि संचिठणा जघ० अंत० उत्० ३ पल्योपमनि, नर देवनि जघ० सातसें वर्षनी उत्० ८४ लाख पूर्वनि, धर्मदेवनी जघ० १ समयनी उत्० देशे
SR No.022129
Book TitleJain Siddhant Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAjramar Jain Vidyashala
Publication Year1928
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy