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जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह.
१४५ उणी पूर्व क्रोडिनी. देवाधि देवनी जघ० बहुतेर वर्षनी उत्० ८४ छाख पूर्वनी.भाव देवनी जघ० दश हजार वर्षनी,उत्०३३ सागरनी.
हवे आठमुं अंतरद्वार कहे छे. भवियद्रव्यदेवतुं आंतरं पडे तो जघ० दश हजार वर्षने अंतर्मुहूर्त अधिक उत्० अनंता काळर्नु
आंतरं पडे. नरदेवनुं जघ० एक सागर झाझेरुं उत्० अर्द्ध पुद्गल परावर्तन देशे उणुं. धर्मदेवनु जघ० २ पल्य झाझेरु, उत्० अर्धे पुद्गल परावर्तन देशे उणुं.देवाधिदेवर्नु आंतरं नथी. भाव देवर्नु जघ० अंत० उत्० अनंता काळy.
इवे नवमुं अल्पबहुत्व द्वार कहे छे सर्वथी थोडा नर देव १. तेथी देवाधिदेव संख्यात गुणा २. तेहथी धर्मदेव संख्यातगुणा ३. तेहथी भवियद्रव्य देव असंख्यात गुणा ४. तेहथी भावदेव असंख्यात गुणा ५. इति पांच देवना बोल संपूर्ण.
अथ श्री दिशाणुवाइ.
समुचय जीव सर्वथी थोडा पश्चिम दिशे कारण के पश्चिम दिशे गौतम द्विप छे तथा चंद्रमा सूर्यना द्विप छे तेथी पाणी थोडं छे ते माटे निल फुल पण थोडि छे तेणे करि जीव थोडा छे १.तेथी पूर्व दिशे विशेषाहिया कारण के, गौतम द्विप नथी २.तेथी दक्षिण दिशे विशेषाहिया कारण के, चंद्रमा सूर्यना द्विप पण नथी ३. तेथी उत्तर दिशे विशेषाहिया कारण के, उत्तरदिशे संख्यातमे द्विपे संख्याति जोजन क्रोडा क्रोडीनुं मानसरोघर छ सीहां पाणी घणु छे तेथी निकुलमा भीष घणा छे ४. पृथ्वीफायना जीव सर्वथी थोडा