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________________ १६८ छकायना भवनो थोकडो.. करीने सातमी नरके अपइठाण नरकावासे तेत्रीस सागरोपमनी स्थितिए गया. त्यां तेमणे मनुष्यना भवमा जे श्वासोश्वास लीधा तेमां अकेक श्वसोश्वास उपर नरकमां केटलं दुःख पडे छे ते कहे छे, अगीआर लाख छपन हजार नवसें ने पचास पल्यापम अने एक पल्योपमनोत्रीजो भाग झाझेरो नरकमां दूःख भोगवे छे. हवे सुख आश्री कहे छे. धना अणगारे नवमास संजम पाल्यो तेना श्वासोश्वास त्रण करोड पचास लाख एकसठ हजार ने त्रणसें थाय. ते धन्नाअणगारे एटला श्वासोश्वास संजम पाळी सर्वार्थसिद्धे सुख पाम्या. ते मनुष्यना एक श्वासोश्वास उपर एकसो ने सात क्रोड, सत्ताणु लाख छर्नु हजार, नवसें अठाणुं पल्योपम, अने एक पल्योपमना छठा भाग माठेरा एटलं सुख भोगवे. पुंडरीक अणगारे त्रण दिवस संजम पाळ्यो तेना श्वासोश्वास त्रण लाख, ओगणचालीस हजार पांचसेंने सित्तेर श्वासोश्वास लीधा. एक श्वासोश्वास उपर सर्वार्थसिद्धमां ते अणगार नवहजार सत्तावीश क्रोड, छोतेर हजार क्रोड आठसें ने एकसठ पल्यापम अधिक एटलं सुख देवमां भोगवे छे. एमज एटलं कुंडरीक संसारमा जवाथी नर्कना दुःख भोगवे छे. इति श्री तेर बोलना थोकडा संपूर्ण. ॥ अथ श्री छकायना भवनो थोकडो॥ श्री गौतम स्वामि वीर भगवानने वंदणा नमस्कार करी पूछे छे के, हे भगवान ! छकायना जीव अंतर मुहूर्तमा केटला भव करे ? श्री वीरभगवान कहे के हे गौतम : पृथ्वी, पाणी, अग्नि,
SR No.022129
Book TitleJain Siddhant Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAjramar Jain Vidyashala
Publication Year1928
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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