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________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. १६७ शुभ देवतानुं आउखु बांधे. छठे बोले एक नवकारशी तप करे तो शुं फळ थाय ? उ०ओगणत्रीश लाख त्रेसठ हजार बसें ने सड़सठ पल्योपम अने एक पल्योना चोथो भाग शुभ देवतानुं आउखु बांधे. ७ में अनुपूर्वी गणे तो शुं फळ थाय ? उ०- पांचसे सा० पाप नासे. ८ में बोले एक उणोदरी तप करे तो ? उ०- सो वरसना पाप नासे. ९ में उपवास करे तो ? उ० हजार वरसना नारकीना पाप नासे. १० में छठ करे तो ? उ०- एक लाख वर्षना नारकीना पाप नासे. ११ में अठम करे तो ? उ०- १ करोड वर्षना नारकीना पाप नासे. १२ में बोले चार तथा पांच उपवास करे तो ? उ० क्रोडान क्रोड वरसना नारकीना पाप नासे. १३ में बोले एक घडीना श्वासोश्वाश केटला थाय ? उ० - एक हजार आठ साडी बेतालीस थाय. वे घडीना श्वासोश्वास प्रण हजार सातसें ने तोतेर थाय. एक दीवश रातना श्वासोश्वास एक लाख तेर हजार एकसो ने नेतुं थाय. पोरशीना श्वासोश्वास पंदर हजार ने बाणु थाय. पंदर दिवसना श्वासोश्वास सोल लाख सत्ताणु हजार आठसें ने पचास थाय. एक मासना श्वासोश्वास त्रीस लाख पंचाणु हजार सातसें थाय. नव मासना श्वासोश्वास त्रण करोड चौद लाख दश हजार बसें ने पचीस थाय. एक वरसना श्वासोश्वास चार क्रोड सात लाख अडताळीस हजार चारसें थाय. सो वरसना श्वासोश्वास चार सें सात क्रोड अडतालीस लाख ने चालीस हजार चार सेंहजार थाय. हवे श्वासोश्वास उपर सुख दुखनी वातो कहे छे. ब्रह्मदत्त चक्रवर्त्तिनुं आउखु सातसें वरसनुं हतुं तेना श्वासोश्वास अठावीसे ने बावन क्रोड आडत्रीस लाख एंसी हजार थाय. तेटळा श्वासोश्वास पुरा
SR No.022129
Book TitleJain Siddhant Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAjramar Jain Vidyashala
Publication Year1928
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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