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जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. अगुरु लघु ए ३ पर्याय अनित्य छे.आकाशमा ४ गुण तेमां लोकालोक प्रमाणे खंध नित्य छे. देश प्रदेश अगुरु लघु अनित्य छे. काळद्रव्यना ४ गुण नित्य. ४ पर्याय अनित्य छे. पुद्गल द्रव्यना ४ गुण नित्य. ४ पर्याय अनित्य. जीवद्रव्यना ४ गुण ३ पर्याय नित्य, अगुरु लघुपर्याय अनित्य. ८. छ द्रव्यमा एक जीव कारणी छे एटले जीव ने पांचे द्रव्य कारण रुप छे. पांच द्रव्य अकारणी छे.९. छ द्रव्यमां स्वरुप, चलण स्वभाव स्थिर स्वभाव, अवकाश दान, नवीन पुराण स्वभाव, पुरण गलन स्वभाव, उपयोग लक्षण, चैतन्य स्वभाव. छःए स्वभावना कर्ता छे. अने व्यवहार नये एक जीव द्रव्य परभाव रुपनो कर्ता छे. शेष ५ द्रव्य अकर्ता छे. १०. छ ए द्रव्यमां सर्वव्यापी एक आकास द्रव्य, लोकालोक प्रमाणे छे. माटे शेष ५ द्रव्य लोक व्यापी छे. ११. इयर अप्पवेशाके० यद्यपि छ ए.द्रव्य एक क्षेत्रमा खिर निरनि परे एकठा मळी रह्या छे तो पण एक बिजामां कोइ कोइमां भळे नहि ए द्रव्यनो विचार.
हवे धर्मास्तिकाय ते केहने कहिए ? धर्म ते चलण स्वभावरूप, गतिमान पुरुषवत्, अस्ति के० त्रण काळमां छे, काय के. असंख्य प्रदेशनो समूह तेने धर्मास्तिकाय द्रव्य कहिये. तेना ४ गुण अरुपी, अचैतन्य, अक्रिय, चलण सहाय, तेना पर्याय पण ४ स्कंध, देश, प्रदेश, अगुरु लघु. १. एम अधर्म कहेता चलणस्वभाव ने प्रतिपक्षी ते स्थिर स्वभाव. स्थितिमान् पुरुषवत्. अस्ति के० त्रण काळमां छे. काय के० असंख्य प्रदेशनो समूह. तेने अधर्मास्तिकाय द्रव्य कहिये, तेना ४ गुण, अरुपि, अचैतन्य, अक्रिय, स्थिर सहाय. तेना पर्याय पण ४ पूर्ववत् . आकाश के० अवगाह आश्रय दानरुप भिंतमां खालीनी पेठे. अस्ति के० त्रण काळमां छे