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________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. १४९ थहने भरत जेवडा पोलपणे १९० खांडवा थाय. इति पहेलो खंडा द्वार समाप्तं. हवे बिजो जोयणद्वार कहे छे. जोयण कहेता जंबुद्विपना चारे हांशे जोजन जोजनना खंड करिये तेबारे सातसें नेतुं क्रोडि छपन का चोराशुं हजार एकसो ने पचास चोरस थाय उपरे १ कोस पनरसें पनर धनूष वधे उपर ६० अंगुल बधे. इति बिजो जोयण द्वार समातं. हवे बीजो वासा द्वार कहे छे. वासा कहेता जंबुद्विपने विषे ७ क्षेत्र ते भरत १ हेमबय २ हरिवास ३ महाविदेह ४ रमकवास ५ एरणबय ६ इरवत ७ ए ७ क्षेत्र तथा एक महाविदेहना ४ भाग गणिये तो पूर्व महाविदेह पश्चिम महाविदेह ८ देवकुरु ९ उत्तरकुरु १० एवं ६ ने ४ भेळवतां १० क्षेत्र थाय. तेहनुं विखंभपणुं, बाहा, जीवा, धनुषपिठ ४. ए ४ कहे. भरत क्षेत्रना २ भेद दक्षिण भरत, ने उत्तर भरत. दक्षिण भरतनुं विखंभपशुं २३८ जोजन ने ३ कळानुं, पहनी बाहा नथी. तेहनी जीवा ९७४८ जोजन ने १२ कळा. तेहनी धनुषपिठ ९७६६ जोजन ने १ कळा झाझेरि. हवे उत्तर भरतनुं विखंभपणुं २३८ जोजन ने ३ कळानुं तेहनी बाहा १८९२ जोजन ने साडीसात कळानी, तेहनी जीवा १४४७१ जोजन ने ६ कळा माठेरि, तेहनी धनुषपिठ १४५२८ जोजन ने ११ कळानी एवं इरवत क्षेत्रनुं पण जाणवु. २. हिमवय, हिरणवय, ए २ क्षेत्रनुं पोलपणुं २१०५ जोजन ने ५ कळानुं. तेहनी बाहा ६७५५ जोजन ने ३ कळा तेहनी जीवा ३७६७४ जोजन ने १६ कळा. तेहनी घनूषपिठ ३८७४० जोजन ने १० कळा. हरिवास, रमकवास ए २ क्षेत्रनुं विखंभपं ८४२१ जोजन ने १ कळा तेहनी बाहा १३३६१ जोजन ने ६ कळा तेहनी जीवा ७३९०१ जोजन ने१७कळा. तेहनी धनूषपिठ ८४०१६
SR No.022129
Book TitleJain Siddhant Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAjramar Jain Vidyashala
Publication Year1928
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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