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________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. . १२१ बंध नरकावासा छे,सर्व मली ९९९९५ सातमी नरके ५ पंक्तिबंध छे, साते नरकना त्यासी लाख नेq हजार त्रणसें सडतालीस पुष्पाविकीर्ण नरकावासा छे. अने साते नरकना नव हजार छसें त्रेपन पंक्तिबंध नरकावासा छे. सर्व मळी ८४ लाख नरकावासाजाणवा ९. दशमे अंधकार कहे छे. नरकनोअने अशुभ पुद्गलनो अंधकार१०. ___इग्यारमे नारकिने उपजवाना स्थानक कहे छे. कुंभिने आकारे घडाने आकारे, पेटोने आकारे, कुंडाने आकारे, एवं नानाविध विषम स्थानके उपजे ११. बारमे क्षेत्र वेदना कहे छे. क्षुधा, तृषा, शित, उष्ण, दाह, ज्वर, भय, शोक, खरज, परवश ए १० प्रकारनी अनंति वेदना छे. तेरमे १५ परमाधामिना नाम कहे छे. अंब, अंबरिस, शाम, सलब, रुद्र, वैरुद्र, काल, महाकाल, अशिपत्र, धनूष, कुंभ, वालु, वेतरणी, खरस्वर, महाघोष. . हवे चौदमे जीव अजीवना परिणाम कहे छे. जीव परिणामना १० भेद ते गति परिणाम, इंद्रिय परिणाम, कषाय परिणाम, लेसा परिणाम, जोग परिणाम, उपयाग परिणाम, नाण परिणाम, दसण परिणाम, चरित्त परिणाम, वेद परिणाम. हवे अजीव परिणामना १० भेद कहे छे, बंधन परिणाम, गति परिणाम,संठाण परिणाम,भेद परिणाम,वर्ण परिणाम, गंध परिणाम, रस परिणाम,स्पर्स परिणाम,अगुरु लघु परिणाम,शब्द परिणाम.१४. पनरमे अवधिज्ञाने देखवू कहे छे.पहेली नरकना नारकि जघ० साडा त्रण गाउ देखे उन्० चार चार गाउ देखे. बिजीनाजघ० ३ गाउ,उत्० साडा अण गाउ देखे. त्रिजीना जघ० अढि गाउ उत्० त्रण गाउ देखे. चोथीनाजघ० बेगाउ,उतू० अढि गाउ देखे.पांचमीना
SR No.022129
Book TitleJain Siddhant Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAjramar Jain Vidyashala
Publication Year1928
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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