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________________ १२० पांच बोल. आठमे आंतराकहेछे.पहेली नरके १३पाथडा ने१२आंतरा छे. अकेका पाथडाने ११५८३ इग्यारहजार पांचसें त्यासीजोजनने १त्रिजा भागनुं आंतरं. बिजी नरके११पाथडा ने१०आंतरा एकेका पाथडाने सता[सें जोजन- आंतलं. त्रिजी नरके ९ पाथडा ने ८ आंतरा एकेका पाथडाने बारहजार त्रणसें पंचोतेर जोजननुं आंतरं. चोथी नरके ७ पाथडा ने ६ आंतरा छे, एकेका पाथडा ने सोल हजार एकसो छासठ जोजन ने २ त्रिजा भागर्नु आंतरं.पांचमी नरके ५पाथडाने४आंतरा,अकेका पाथडाने सवापचीशहजारजोजननुं आंतरं. छठी नरके ३पाथडा ने २आंतरा,एकेका पाथडाने साडाबावन हजार जोजननुं आंतरं. सातमी नरके १ पाथडो छे.आंतरुंनथी ८. हवे नवमे पुष्पाविकीर्ण ने आवलिका बंध नरकावासा कहे छे. पहेली नरके ओगणत्रीश लाख पंचाणु हजार पांचसें सडसठ पुष्पाविकीर्ण नरकावासा छे. अने चुमालिसें तेत्रीस पंक्तिबंध नरकावासा छे. एवं सर्व मळीने ३० लाख. बीजी नरके चोविस लाख सताणुहजार त्रणसें पांच पुष्पाविकीर्ण नरकावासा छे, अने छविसे ने पंचाणु पंक्तिबंध नरकावासा छे.एवं सर्व मळीने २५ लाख. त्रिजी नरके चौदलाख अठाणुंहजार पांचसे पंदर पुष्पाविकीर्ण नरकावासा छे, अने चौदसें पंच्यासी पंक्तिबंध नरकावासा छे. एवं सर्व मळीने १५ लाख. चोथोनरके नव लाख नवाणुं हजार बसें त्राणुं पुष्पाविकीर्ण नरकावासा छे, अने सातसें सात पंक्तिबंध नरकावासा छे, एवं सर्व मळीने १० लाख. पांचमी नरके बेलाख नवाणु हजार सातसें पांत्रीस पुष्पाविकीर्ण नरकावासा छे, अने बसें पांसठ पंक्तिबंध नरकावासा छे. एवं सर्व मलिने ३ लाख. छठी नरके नवाणुं हजार नवसें बत्रीस पुष्पाविकीर्ण नरकावासा छे, अने ६३ पंक्ति
SR No.022129
Book TitleJain Siddhant Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAjramar Jain Vidyashala
Publication Year1928
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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