SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. १६५ योनी एक अचेत. पांच स्थावर, त्रण विग्लेंद्रिय समुच्चत तिर्यंच, अने समुच्चय मनुष्यमां योनी त्रण पामे छे. हवे संत्री तिर्यच अने संत्री मनुष्यमा योनी एक मिश्र. हवे तेनो अल्पबहुत्व कहे छे. सर्वथी थोडा मिश्र योनीया अनंता गुणा. वळी योनी त्रण प्रकारनी-संवुडा, वियडा, ने संवुडावियडा. संवुडा कहेतां ढांकी,वियडा कहेतां उघाडी, संवुडा वियडा कहेतां कांइक ठांकी अने कांइक उघाडी. हवे पांच स्थावर, देवता अने नारकीमां योनी एक संवुडा, त्रण विग्लेन्द्रिय, समुच्चय तिर्यच अने मनुष्यमांत्रण योनी पामे. संनी तियेच अने संत्री मनुष्यमा योनी एक संवुडावियडा. हवे तेनो अल्पबहुत्व कहे छे. सर्वयी थोडी संवुडावियडा, तेथी वियडा योनीया असंख्यातगुणा, तेथी अयोनीया अनन्तगुणा, तेथी संवुडा योनीया अनन्तगुणा. वळो योनी त्रण प्रकारनी छे. संखा कहेतां शंखने आकारे, कच्छा कहेता काचबाने आकारे,वंशपत्ता कहेतां वांसना पांदडाने आकारे. चक्रवतिनी खीरत्ननी योनी शंखने आकारे ते योनीवाळी स्त्रीने संतान न थाय. ५४ सलाखा पुरुषनी मातानी योनी काचबाने आकारे होय, अने सर्व मनुष्यनी मातानी योनी वांसना पांदडांने आकारे होय. इति श्री योनी पदनो थोकडो संपूर्ण. अथ श्री तेर बोलनो थोकडो. श्री पन्नवणा सूत्र पद पंदरमे तेर बोलनो विवरो छे ते कहे छे. श्री वीरभगवानने गौतम स्वामी वंदणा नमस्कार करीने एम पुछे छे के हे भगवान ! पहेले बोले-सो वर्षनाजुग केटला ? संव
SR No.022129
Book TitleJain Siddhant Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAjramar Jain Vidyashala
Publication Year1928
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy