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पचीस वोलनो पोको.
अथ श्री पचीस बोलनो थोकडा.
|| पहेले बोले महावीर प्रभुए एका एक दीक्षा लीघी अने मोक्ष पण एकाएक गया. उर्द्धलोके सर्वार्थसिद्ध विमान एक लाख जोजननुं छे, त्रिछा लोके जंबुद्वीप एक लाख जोजननो छे; अधो लोके सातमी नरके अपठाण नरकावासो एक लाख जोजननो छे. चित्रा नक्षत्र, शांति नक्षत्र, आरद्रानक्षत्र, ए त्रण नक्षत्रनो एकेको तारो को छे. १.
बीजे बोले धर्मकरणी करती वखते वे दीशा सन्मुख बेसी करवी ते पूर्व अने उत्तर. वे प्रकारे धर्म को छे; गृहस्थ धर्म अने साधु धर्म. वे प्रकारे जिव कह्या छे, सिद्धना जीव अने संसारी जीव. वे प्रकारे दुःख कथं छे, ते शारीरिक दुःख अने मानसिक दुःख. पूर्वा फाल्गुणी नक्षत्र, उत्तरा फाल्गुणी नक्षत्र, पूर्वा भाद्रपद अने उत्तरा भाद्रपद ए चार नक्षत्रना बबे तारा कह्या छे. २.
त्रीजे बोले श्रावक त्रण मनोरथ चितवे ते एवी रीते के, हे भगवान ! हुं आरंभ अने परिग्रह क्यारे छांडीश ? हे भगवान ! हुं पंचमहाव्रतधारी क्यारे थइश ? हे भगवान ! हुं आलोयणा करी संथारो क्यारे करीश ? ते वखतने धन्य छे. त्रण प्रकारना जिन कह्या छे:- अवधीज्ञानी जिन, मनः पर्यवज्ञानी जिन, केवळज्ञानी जीन. त्रण प्रकारना पात्र साधुने खपे ते - माटीनुं, तुंबडानुं, काष्टतुं. साल नक्षत्राण त्रण तारा का छे. अभिच, श्रवण, अश्वनी, भरणी, मृगशर, पुष्य, ज्येष्ठा ए सात नक्षत्र, ३.
चोथे बोले श्रावकने चार विसामा कह्या छे भार वहेनारने दृष्टांते. एवी रीते के भार एक खमेथी बीजे