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________________ २१० पचीस बोलना थोकडो. वामां आसक्त होष ते एकलो रहे, कतोहलो मरकरी होय ते एकलो रहे, धुतारी होय ते एकलो रहे, माठा आचारनो घणी होय ते एकलो रहे. आठ गुगनो धगी एकलो हाय तेना- नाम -संगमने विषे दृढ प्रणामनो धणी गुरुनी आज्ञा लइ एकलो रहे, घणा सूत्रनो जाण एकलो रहे, जघन्य दश पूर्वनो भणेलो उत्कृष्ट चउद पूर्वनो भणेलो एकलो रहे, चार ज्ञाननो धणी एकलो रहे, महा वळनो घणी एकलो रहे, क्लेश रहीत होय ते एकलो रहे, संतोषी होय ते एक रहे, धैर्यवंत होय ते एकलो रहे. देखता आठ प्रकारे अंध ह्या ते कहे छे. कामांध, क्रोधांध, कृपणांध, मानांघ, मांध, चोरांध, जुगटयांध, चुगल्पांघ, ए आउ आंधळा जाणवा. आठ महा पापी कहे छे - आत्मघाती, विश्वासघातो, गुण ओळवनार, गुरुद्रोही, कुडी साक्षी पुरे ते, खाटी सलाह आपे ते, पञ्चखाण वारंवार भांगे ते समय धर्म परूपे ते महा पापी. नवमे बोले नव प्रकारे शरीरमां रोग उपजे ते कहे छेखायता रोग उपजे. अजीरणमां खाय तथा घगुं बेसी रहे तो रोग उपजे, धणुं डंबे तो रोग उपजे, घगुं जागे तो रोग उपजे, दिशा रोके तो रोग उपजे, पिशाब रोके तो रोग उपजे, घगुं चाले रोग उपजे वस्तु भोगवे तो रोग उनजे, वारंवार विषय सेवे तो रोग उपजे नव बोल समजवाना का ते कहेछेरजपुतने क्रोध घणो, क्षत्रीयने मान घणुं, गुणकाने माया घणी, ब्राह्मणने लोभ घणो, मित्रने राग घगो, श्पोकने द्वेष घणो, जुगारीने शोच घणो, चोरनी माताने चिंता घगी, कायरने भय घणो. दशमे बोले नारकीना जीवने दश प्रकारनी वेदना कहे छे - अनंती भूख, अनंती तरस, अनंती टाढ, अनंतो गरमी, अनंतो दाघ, अनंतो भव, अनंतो ज्वर, अनंती खरज, T
SR No.022129
Book TitleJain Siddhant Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAjramar Jain Vidyashala
Publication Year1928
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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