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________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. आहारकना अंगउपांग वज्जरिषभनाराचसंघयण, समचउरंशसंठाण, शुभवर्ण, शुभगंध, शुभरस, शुभस्पर्श, अगुरु लघुनाम,पराघातनाम, उस्वासनाम, आतापनाम, उद्योतनाम, शुभचालवानिगति, निर्माणनाम, सनाम, बादरनाम, प्रजाप्तनाम,प्रत्येकनाम,स्थिरनाम, शुभनाम, सौभाग्यनाम, सुस्वरनाम, आदेयनाम, जशोकीर्तिनाम, देवतानुआउष्य, मनुष्यआउष्य, तिर्थचनुं आउष्य जुगलवत्, तिर्थकरनामकर्म, एवं ४२ भेद पुण्यना जाणवा.इति पुण्यतत्वं समाप्तं.३. हवे १८ प्रकारे पाप उपराजे ते कहे छे. प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशून्य, परपरिवाद, रतिअरति, माया मोसो, मिछादंसणसल्ल, एवं १८ हवे तेहना अशुभ फल ८२ प्रकारे भोगवे ते कहे छे. मतिज्ञानावरणिय, श्रुतज्ञानावरणिय, अवधिज्ञानावरणिय,मनपर्नवज्ञानवरणिय,केवलज्ञानावरणिय,दानांतराय,लाभांतराय, भोगांतराय, उपभोगांतराय, वीर्यातराय, निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलापचला, थीणद्विनिद्रा, चक्षुदर्शनावरणिय, अचक्षुदर्शनावरणिय, अवधिदर्शनावरणिय, केवलदर्शनावरणिय, निच्चगोत्र, अशातावेदनीय, मिथ्यावमोहनिय, स्थावरपणुं, सूक्ष्मपणुं, अपजाप्तापणुं, साधारपणुं, अस्थिरनाम, अशुभनाम, दौर्भाग्यनाम, दुःस्वरनाम, अनादेयनाम, अजशोकीर्तिनाम, नरकनिगति, नरकनुंआउखु, नरकानुपूर्वी, अनंतानुबंधि क्रोध, मान, माया, लोभ, अपच्चखाणावरणिय क्रोध, मान, माया, लोभ, पञ्चखाणावरणिय क्रोध, मान, माया, लोभ संजलनो क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति, भय, शोक, दुगंछा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद, तिर्यचनी गति, तियेचनी अनुपूर्वी, एकेंद्रियपणुं, बेइद्रिय
SR No.022129
Book TitleJain Siddhant Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAjramar Jain Vidyashala
Publication Year1928
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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