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________________ लघु दंडक. मनपर्यवज्ञान, केवलज्ञान १५. अनाणे कहेतां अज्ञान त्रण. मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान, विभंगज्ञान १६.जोग कहेतां जोगपनर च्यार मनना, च्यार वचनना, सात कायाना. हवे च्यार मनना कहेछे. सत्यमनजोग, असत्यमनजोग, मिश्रमनजोग, व्यवहारमनजोग. हवे च्यार वचनना कहे छे. सत्यवचनजोग, असत्यवचनजोग, मिश्रवचनजोग, व्यवहारवचनजोग. हवे सात कायाना कहे छे. उदारिक, उदारिकनो मिश्र, वैक्रेय, वैक्रेयनो मिश्र, आहारक, आहारकना मिश्र, कार्मणकायजोग, एवं पनर जोग १७. उपयोग कहेतां उपयोग बार. पांच ज्ञान, प्रणअज्ञान, च्यार दर्शन, एवं बार १८. तहाकिमाहारे कहेतां. तिमन अनुको आहार लोए, जघन्य त्रण दिसनों, उत्कृष्टो छ दिसतो, त्रण दिस ते कइ ? उंची, नीची ने त्रीछी. ए त्रण दिशनो लीए. छदिस ते कइ ? पूर्व, पछिम, उत्तर, दक्षिण, उंची, नीची, ए छ दिसनो आहार लीए. तथा वलि त्रण प्रकारनो आहार. सवेत, अवेत, ने मित्र. आज, रोम, ने कवल, ए त्रण प्रकारनो आहार १९. उववाय कहेतां आवीने उपजे, चोविस दंडकनो ते आगल कहेवासे२०. ठिइ कहेतां थिति जघन्य अंतर्मुहूर्तनी अने उत्कृष्टी तेत्रीस सागरोपमनी, ते आगल कहेवासे २१. समुहाए कहेता समाहियामरण, असमाहियामरण, समाहियामरण ते केहने कहिये, कीडीनीलारनीपरे जीवना प्रदेशछुटाछुटा नीकले, तेहने समोहिया मरण कहिये, असमोहियामरण ते केहनेकहिये बंदुकना भडाकानीपरे जीवना प्रदेश सामटा नीकले तेहने असमोहियामरण कहिय २२. चवण कहेतां चविने जाय जेटला दंडकमां ते आगल केहेवासे. २३. गइ कहेतां गति पांच. नरकनीगति, तिर्यचनीगति, मनुष्यनीगति, देवतानीगति, सिद्धनीगति,
SR No.022129
Book TitleJain Siddhant Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAjramar Jain Vidyashala
Publication Year1928
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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