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जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह.
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९० एकेंद्रीया जीव विशेषाहीया ९१. तिर्यच जीव विशेषाहीया ९२ मिथ्यादृष्टी जीव विसेषाहीया ९३ अवरति जीव विसेषाहीया
८९ वनस्पति जीव विसेषाहीया | ९४ सकसाया जीव विसेषाहीया ९५ छदमस्त जीव विसेषाहीया ९६ सजोगी जीव विसेषाहीया ९७ संसारिक जीव विसेषाहीया ९८ सर्व्व जीव विसेषाहीया
इतिश्री अठाणुं बोलनो अल्प बहुत्व संपूर्ण
अथ श्री छ आराना बोल.
दशक्रोडा क्रोडि सागरोपमना छआरा जाणवा, तेहमां पहेलो आरो ४ क्रोडाक्रोड सागरोपमनो जाणवो. ए आरो सुसम सुसम - नामा जाणवो. एकलुं सुखमां सुख जाणवु. ए आराने विषे ३ गाउनुं देहमान अने ३ पल्योपमनुं आउखं. उत्तरते आरे २ गाउनुं. देहमान अने २ पल्योपमनुं आउखु जाणवु. ए आरे बसेनेछपन पांसली, उतते आरे एकसो ने अठाविस पांसली जाणवी. ए आराने विषे, वज्र रुषभनाराच संघयण ने समचउरंस संठाण जाणवुं. स्त्री पुरुषना रूप सोभाग्य घणा दिपे. ए आराने विषे अठम भक्ते आहारनी इच्छा उपजे. तेवारे शरीर प्रमाणे आहार करे. धरतिनी सरसाइ साकर सरखी जाणवी. उतरते आरे खांड सरखिजाणवि, ए आराने विषे दश प्रकारना कल्पवृक्ष मनवंछीत मुख पहोचाडे ते कल्पवृक्षनां नाम,
गाथा कहे छे. मतंगायभिंगा तुडियंगा दिव जोइ चित्तगा चित्तरसा मणवेगा गिरगारा अणियगणाउं १. ए गाथा सूत्र पाठे कही तेनो अर्थ कहे छे. मतंगाय कहेता मिठा मधुरा रसना कल्पवृक्ष थइ आवे, भिंगा कहेता रत्नजडाव भाजनंना कल्पवृक्ष थइ आवे. तुडियंगा कहेता गणपचास जातिनां वाजिंत्रना क० थ०