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________________ ११८ पांच बोक. लाख ने अठ्यावीश हजार जोजननो पृथ्वीनो पिंड छे, तेहमांहि १ हजार जोजन उंचुं मुकीये. १ हजार जोजन निचुं मुकीये. बचे एक लाख ने छविश हजार जोजननो पृथ्विनो पिंड छे. तेमांहि ९ पाथडा ने १५ लाख नरकावासा छे. चोथी नरके एक लाख ने २० हजार जोजननो पृथ्वीनो पिंड छे. तेहमाथि १ हजार जोजन उचुं मुकिये, १ हजार जोजन निचुं मुकिये. वचे १ लाख ने १८ हजारजोजमनि पोलारछे. तेहमांहि ७ पाथडा ने १० लाख नरकावासाछे. पांचमी नरके एक लाख ने अढार हजारजोजननो पृथ्वीनो पिंड छे. तेहमांथी एक हजारजोजन उंचुं मुकीए. एक हजार जोजन नीचुं मुकीए. वचे एक लाख सोळ हजार जोजननी पोलारछे. तेहमांहि ५पाथडा ने ३ लाख नरकावासा छे. छठी नरके एक लाखने १६हजार जोजननो पृथ्वीनो पिंडछे. तेहमाथि १ हजार जोजन उंचुं मुकिये. १ हजार जोजन निचुं मुकिये. वचे १ लाख ने १४ हजार जोजननि पोलार छे. तेहमांहि ३पाथडा ने १ लाखमां ५ उणां नरकावासा छे. सातमी नरके १ लाख ने ८ हजार जोजननो पृथ्वीनो पिंड छे. तेहमाथि साडाबावन हजार जोजन उंचुं मुकिये. साडा बावन हजार जोजन निचुं मुकिये. बचे ३ हजार जोजननो जाडो एक पाथडो छे. तेहमांहि ५ नरकावासा छे. छठे लोक कहे छे. पहेली नरकथी १२ जोजन जइये तिवारे त्रिछो अलोक आवे. बिजी नरकथी १२ जोजन ने २ त्रिजा भागे त्रिछो अलोक आवे. त्रजी नरकथी १३ जोजन ने १ त्रिजा भागे त्रिछो अलोक आवे. चोथी नरकथी १४ जोजन त्रिछो अलोक आवे. पांचमिथी १४ जोजन ने २ त्रिजाभागे अलोक आवे. छठीथी १५ जोजन ने १ त्रिजाभागे त्रिछो अलोक आवे. सातमी नरके १६ जोजने त्रिछो अलोक आवे
SR No.022129
Book TitleJain Siddhant Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAjramar Jain Vidyashala
Publication Year1928
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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