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________________ १७६ संजयाना बोल. अतिचार रहित ने पंच महाव्रत कल्प, जिनकल्प, स्थिवर कल्प आरोपीए २. परिहार विशुद्ध चा- अने कल्पातीत, तेमां स्थिती रित्रना बे प्रकार, एक तप करवा कल्पमा ५ चारित्र लाभे अस्थिति पेठो. बीजो परिहार विशुद्ध चा- कल्पमां ३ चारित्र लाभे सामारित्र सेवीने नोकल्यो ते ३. यक, सुक्ष्म संपराय, जथाख्यात मुक्षम संपराय चारित्रना बेप्रकार, ए३लाभे जिनकल्प अने स्थिवर एक उपसम श्रेणीथी पडतो,बीजो कल्प एरमा आगल्या ३चा०लाभे क्षपक श्रेणीए चडतो ४. यथा- | कल्पातीतमा ३ चारित्र लाभे ख्यात चारित्रना बे प्रकार एक सा०, सु०,जथाख्यात ए ३ लाभे छदमस्थ, बीजो केवळीनो ५. ५पुलाक १, बकुस २, पति २ सामायक, छेदोपस्थानीय, | सेवणा ३, कषाय कुसील ४, सवेदी ने अवेदी बे. जो अवेदी | निर्गथ ५, स्नातक ६, तेमां पुहोय तो? उपशम वेदीने,क्षीणवेदि लाक बकुस, पति सेवणा, ए ३ होय. अने सवेदी होय तो ?त्रणे मा बे चारित्र लाभे, सामा०, वेदमां होय. अने परिहार विशुद्ध छेदो०. ए बे चारित्र लाभे कसवेदी होय पण अवेदी न होय. | षाय कुक्षीलमा आगल्या ४चारित्र सवेदी होय तो पुरुष, पुरुष न- | लाभे निर्गथमां ने स्नातकमां पुंसक ए बे वेदमां होय. सुक्ष्म | एक जथाख्यात चारित्र लाभे. संपराय, अने जथाख्यात ए अ- ६ हवे प्रतिसेवणा द्वार कहे वेदीहोय.उपसमनेक्षीणवेदीहोय. छे प्रतिसेवीमा आगल्या २ चा ३ आगला ४ चारित्र स- रित्र लाभे. तेमां पण मूल गुण रागी, अने जथाख्यात वीतरागी उत्तर गुण प्रतिसेवीमांबे आगल्या ते उपसम ने क्षीणरागी होय. चारित्र लाभे अने अप्रतिसेवीमां ४ स्थिती कल्प, अस्थिति तो ५ चारित्र लाभे.
SR No.022129
Book TitleJain Siddhant Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAjramar Jain Vidyashala
Publication Year1928
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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