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________________ ३८ घु दंडक देवतानी, ज० पा पल्पनी, ऊ० एक पल ने लाख वरसनो. तेहनी देवीनी ज० पा पल्यनी, ऊ० अरघ पल्य ने पचास हजार वरसनी. सूर्यना देवतानी, ज० पा पल्यनी, ऊ० एक पल्य ने हजार वरसनी. तेहनी देवीनी ज० पा पल्यनी, ऊ० अरव पल्य ने पांचसे. वरसनी. ग्रहनादेवतानी ज० पा पल्यनी, उ० एक पल्पनी, तेहनी देवीनी ज० पापल्यनी, उ० अरघ पल्यनी, नक्षत्रना देवतानी ज० पापल्यनी, उ० अरघ पत्नी, तेहनी देवीनी, ज० पल्पना आठ भाग, उ० पा पल्यनी. ताराना देवतानी ज० पल्यना आठमा भाग, उ० पा पल्यनी. तेहनी देवीनी ज० पल्यना आठमा भाग, उ० पल्या आठमा भाग झाझेरी. समोहिया ने असमेोविया ए बे मरण ले. चवण ते चविने जाय. पांच दंडकमां, पृथ्वी, पाणी, वनस्पति, मनुष्य ने तिर्यचमां गइ ते मरीने वे गतिमां जाय. मनुष्य ने तिर्यचमां. आगर ते मनुष्य ने तिर्यचनो आवे. प्राण दस जोग त्रण. इति त्रैविसमा ज्योतिषीना दंडक संपूर्ण २३. • हवे चाविसमा वैमानिकनेो दंडक. तेहमां सरीर त्रण. वैक्रेय, तेजस ने कार्मण. अवघेणा सुधर्म, इशान ए वे देवलेोके ज० अंगुळ असं० उ० सात हाथनी. त्रीजे, चोथे देवलोके छ हाथनी. पांचमे छठे देवलोके पांच हाथनी. सातमे, आठमे देवलोके चार हाथनी, नवमे, दसमे, इग्यारमे, बरमे दे० त्रण हाथनी. नव ग्रैवेयकें बे हाथनी. चार अनुत्तर विमानमां एक हाथनी. सर्वार्थसिद्धम मुंढा हाथनी. अने उत्तरवैक्रेय करे तो बार देवलोक सुधी ज० गु० संख्या ० उत्कृष्टी लाख जोजजनी. संघयण नथी. संठाण एक. समचउरंस, कषाय चारे पण लाभ घणो. संज्ञा चारे पण परिग्रहसंज्ञा घणी. लेस्या पेहेले बीजे देवलेोके एक तेजु
SR No.022129
Book TitleJain Siddhant Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAjramar Jain Vidyashala
Publication Year1928
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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