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________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. लेस्या. त्रीजे, चोथे, पांचमे, एक पदम लेस्या. छठाथी मांडी नव ग्रैवेयकमां. एक सुकल लेस्या, अने पांच अनुत्तर विमानमां, १:परमसुकल लेस्या. इंद्री पांचे. समुद्घात बार देवलोकमां पांच. आहारक ने केवल नही. नव ग्रैवेयक ने पांच अनुत्तर विमानमा त्रण. वेदनी, कषाय ने मारणांतिक, संज्ञी एकला छे. वेद पेहेले बीजे देवलोके बे. स्त्रीवेद, पुरुष वेद. त्रीजाथी ते सार्वार्थसिद्ध लगे एक पुरुष वेद. पर्या ५ भाषा मन भेला बांधे. दृष्टी बारदेवलोकमां त्रण दृष्टी. नवग्रैवेयकमां बे दृष्टी. समकित ने मिथ्यात. पांच अनुत्तर विमानमा एकदृष्टी. समकित. बारदेवलोक ने नव ग्रैवेयकमां त्रण ज्ञान, त्रण अज्ञान, त्रण दर्शन. पांच अनुत्तर विमानमां अज्ञान नथी. जोग अगीयार, चार मनना, चार वचनना, त्रण कायाना ते. वैक्रेय. वैक्रेयनो मिश्र ने कार्मण कायजोग एवं अगीयार. उपयोग बारदेललोक ने नव ग्रैवेयकमां नव. त्रण ज्ञान, त्रण अज्ञान, त्रण दर्शन एवं नव. पांच अनुत्तर विमानमा छ उपयोग त्रण ज्ञान, त्रण दर्शन ए छ. तिमज आहार ले तो जघन्य ने उत्कृष्टो छ दिसनो तथा बे प्रकारे ओज ने रोम ते पण अचेत ने सुभ आहार, उववाय ते आवीने उपजे पहेला देवलोकथी मांडीने आठमा देवलोक सुधी बे दंडकना. मनुष्य ने तिर्यचना अने नवमेथी ते सर्वार्थसिद्ध लगे एक मनुष्यनो आवे. स्थिति पेहेले देवलोके जघन्य एक पल्यनी, उत्कृष्टी बे सागरनी. तेहनी परीग्रहीत देवीनी ज० एक पल्यनी, उ० सात पल्यनी, अने अपरिग्रहीत देवीनी ज० एक पल्यनी, उ. पचास पल्यनी, बीजे देवलोके एके पल्यनी झाझेरी, उ० बे सा० झाझेरी. तेहनी परिग्रहीत देवीनी, ज० एक पल्यनी झाशेरी, उ०
SR No.022129
Book TitleJain Siddhant Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAjramar Jain Vidyashala
Publication Year1928
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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