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________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्तनी उत्कृष्टी दश सागरोपम ने अंतर्मुहूर्त अधिक, शुक्ल लेश्यानी स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्तनी, उत्कृष्टी ३३. सागरोपम ने अंतर्मुहूर्त अधिक. ए समुच्चय लेश्यानी स्थिति कही, हवे चार गतिनी लेश्यानी स्थिति कहे. छे. प्रथम नारकीनी लेश्यानी स्थिति कहे : छे - कात लेश्यानी स्थिति जघन्य दश हजार वर्षनी, उत्कृष्टा त्रण सागरापम ने पलनो असंख्यातमो भाग, नील लेश्यानी स्थिति जघन्य त्रण सागर ने पलनो असंख्यातमो भाग, उत्कृष्टी दश सागर ने पलनो असंख्यातमो भाग, कृष्ण लेश्यानी स्थिति जघन्य दश सागर ने पलनो असंख्यातमो भाग, उत्कृष्टि तेत्रीस सागर ने अंतर्मुहूर्त अधिक ए नारकीनी लेश्या कही. हवे मनुष्य तीन स्यानी स्थिति कहे छे - पहेली पांच लेइयानी स्थिति जघन्य उत्कृष्टी अंतर्मुहूर्त्तनी, शुकल लेस्यानी स्थिति केवळी आश्री जघन्य अंतर्मुहूर्तनी, उत्कृष्टी नव वर्ष उणी पूर्व क्रोडनी. हवे देवतानी लेस्थानी स्थिति कहे छे - भवनपति, वाणव्यंतर ए मां कृष्णलेस्यानी स्थिति जघन्य दश हजार वर्षनी, उत्कृष्टी पलना असंख्यातमा भागनी, नील लेस्थानी स्थिति जघन्य कृष्ण लेस्यानी उत्कृष्टी स्थितिथी एक समय अधिक ने उत्कृष्टी पलनो असंख्यातमो भाग, कापुत लेस्यानी स्थिति जघन्य नील लेस्यानी उत्कृष्टी स्थितिथी एक समय अधिक, उत्कृष्टी पलना असंख्यातमा भागनी, तेजुलेस्यानी स्थिति जघन्य दश हजार वर्षनी, भवनपति वाणव्यंतरनी उत्कृष्टी वे सागर ने पलनो असंख्यातमो भाग अधिक, वैमानिक देवनी पत्र लेख्यानी स्थिति जघन्य तेजुलेस्थानी उत्कृष्टी स्थितिथी एक समय अधिक, वैमानिकनी उत्कृष्टी दश सागर ने अंतर्मुहूर्त अधिक, वैमानिकनी शुक्ल लेस्थानी स्थिति जघन्य पद्म
SR No.022129
Book TitleJain Siddhant Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAjramar Jain Vidyashala
Publication Year1928
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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