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१७२ छ लेस्थानो योकडो. मायानो गवेष, आरंभनो अत्यागी, पापने विषे सहासीक, ए नील छेश्यानां लक्षण जाणवां. कापुत लेश्यानां लक्षण कहे छ-बांका.बोलो वांकां काम करनार, माया करीने हरखाय, सरळपणा रहित, मोढे जुदो अने पुठे जुदो, मिथ्या खोटा वचननो बोलनार, चोरी मच्छरनो करनार, ए कापुत लेश्यानां लक्षण जाणवां. तेजु लेश्याना लक्षण कहे छे-मर्यादावंत, माया रहित, चपळपणा रहित, कतोहळ रहित, विनयवंत, दमीतेंद्री, शुभ जोगवंत, उपध्यान तप सहित, दृठ धर्मी, प्रिय धर्मी, पाप थकी बीहे, ए तेजुलेश्यानां लक्षण जाणवां. पद्म लेश्यानां लक्षण कहे छे-क्रोध, मान, माया, लोभ, पातळा कर्या छे. प्रशांत चित्त आत्मानो दमणहार, योग, उपध्यान सहित होय, थोडाबोलो, उपशांत, जीतेंद्रि, ए पदभ लेश्यानां लक्षण जाणवां. शुकल लेश्याना लक्षण कहेछे-आतध्यान, रौद्रध्यानथी सर्वथा रहित, धर्म ध्यान, शुकल ध्यान सहित, दश प्रकारनी चित्त समाधिए करी सहित, आत्माना दमणहार,इत्यादिक शुकळ लेश्यानां लक्षण जाणवां. ___आठमो लेश्याना स्थानकनो द्वार कहे छे-असंख्याती उत्सपिणी अवसर्पिणोना जेटला समय थाय तथा असंख्याता लोकना जेटला आकाश प्रदेश थाय, एटलां लेश्यानां स्थानक जाणवां.
नवमो लेश्यानी स्थितिनो द्वार कहे छे-कृष्ण लेश्यानी स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्तनी, उत्कृष्टी ३३ सागरोपम ने अंतर्मुहुर्त अधिक नील लेश्यानी स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्तनी, उत्कृष्टी दश सागरोपम ने पलनो असंख्यातमो भाग अधिक, कापुत लेस्यानी स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्तनो, उत्कृष्टी त्रण सागरोपम ने पलनो असंख्यातमो भाग अधिक तेजु लेश्यानो स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्तनी, उत्कृष्टो बे सागर ने पलनो असंख्या मो भाग अधिक; पद्म लेश्यानी