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जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. १७१ चोथो लेश्याना गंधनो द्वार कहे छे-जेवो गायना मडाना, कुतरानां मडामो, सर्पना मडानो एथी अनन्त गुणो अधिक अप्रसस्थ, प्रथम त्रण माठी लेस्यानो गंध जाणवो. १. जेवो कपुर, केवडो, प्रमुख सुगंधी पदार्थ वाटतां (घुटता) जेवी सुगंध नीकळे ते करता अनन्त गुणो प्रसस्थ त्रण सारी लेश्यानो गंध जाणवो.
पांचमो लेश्याना स्पर्शनो द्वार कहे छे-जेवी करवतनी धार, जेवी गायनी जीभ, जेवू मुंझनु तथा वांसनुं पान, ते करतां अनन्त गुणो माठी अप्रसस्थ लेश्यानो स्पर्श जाणवो. १. जेवी बुर नामे वनस्पति, जेवु माखण, जेवां सरसवनां फूल, जेवू मखमल ए करतां अनन्त गुणो अधिक प्रसस्थ लेश्यानो स्पर्श सुंवाळो जाणवो. २.
छठो लेश्याना परिणामनो द्वार कहे छे-लेश्या त्रण प्रकारे प्रणमे-जघन्य, मध्यम, अने उत्कृष्ट. तथा नव प्रकारे प्रणमे ते उपर त्रण कही तेना अकेकना त्रण त्रण भेद थाय. जेमके, जघन्यनो जघन्य, जघन्यनो मध्यम, जघन्यनो उत्कृष्ट ए रीते दरेकना त्रण त्रण भेद करतां नव भेद थाय. एम नवना सत्तावीस भेद थाय, एम सत्तावीस ना एकाशी भेद थाय, एम एकाशीना बशे ने तालीस भेद थाय, एटले भेदे लेश्या परिणमे.
सातमो लेश्यानां लक्षणनो द्वार तेमां प्रथम कृष्ण लेश्यानां लक्षण कहे छे-पांच आश्रवनो सेवनार, त्रण अगुप्तिवंत, छकाय जीवनो हींसक, आरंभनो तित्र परिणामी तथा द्वेषी, पाप करवामां सहासिफ, निठोर परिणामी, जीवहींसा शुग रहित करनार, अजीतेंद्री एवा जोगे करी सहित होय तेने कृष्ण लेष्यानु लक्षण जाणवू. नील लेश्यानां लक्षण कहेछे-इविंत, अमृखवंत,तप रहित,मायावी, पाप करतां लाजे नहीं, गृधी, धृतारो, प्रमादी, रसनो लोलुपी,