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________________ १७४ चार कषायनो थोकडो. स्थानी उत्कृष्ट |स्थतिथी एक समय अधिक, उत्कृष्टि तेत्रीस सागर उपर अंतर्मुहूर्त अधिक. दशमो लेश्यानी गतिनो द्वार कहे छे-कृष्ण, नील, कालुत ए ऋण अमसस्थ अधम लेश्या तेणेकरी जीव दुर्गति जाय. तेजु, पद्म, शुक्ल ए त्रण धर्म लेश्या, तेणे करीने जीव सुगतिए जाय. अगीआरमो लेश्याना चवननो द्वार कहे छे- सघळी लेश्या प्रथम प्रणमती वखते कोइ जीवने उपज के चवकुं नथी तथा लेस्थाना छेल्ला समये कोइ जीवने उपजबुं के चबवुं नथी परभवने विषे केम चवे ते कहे छे-लेस्या परभवनी आवी थकी अंतर्मुहूर्त गया पछी शेष अंतर्मुहूर्त आउखा आडा रहे थके जीव परलोकने विषे जाय. इति श्री लेस्यानो थोकडो संपूर्ण. अथ श्री चार कषायनो थोकडो . श्री पन्नवणाजी सूत्र पद चौदमे कषायनो वर्णन चाल्यो छे. कषाय १६ प्रकारे कही छे - १. पोताने माटे, २. परने माटे, ३. तदुभया कहेता बन्ने माटे, ४. खेत कहेतां उघाडी जमीनने माटे ५. बथु कहेतां ढांकी जमीनने माटे, ६. शरीर माटे, ७ उपधिने माटे, ८ निरर्थकपणे, ९. जाणतां १०. अजाणतां ११. उपशांतपणे, १२. अणुपशांतपणे, १३. अनंतानुबंधी क्रोध, १४. अप्रत्याख्यानी क्रोध, १५. प्रत्याखानी क्रोध, १६. संजलनो क्रोध, एवं १६. ते १६ समुच्चय जीव आश्री अने चोवीश दंडक आश्री एम २५ ने सोले गुणतां ४०० थाय हवे कषायना दळीआ कहे 9
SR No.022129
Book TitleJain Siddhant Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAjramar Jain Vidyashala
Publication Year1928
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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