________________
जैन सिद्धांत मकरण संग्रह. १३३ १६ हजार देवता, एम बिजा देवलोके १० सहस्र, १२ सहस्र, १४ सहस.त्रीजा देवलोके ८ सहस्र, १० सहस्र,१२ सहस्त्र. चोथे देवलोके ६ सहस्र, ८ सहस्र, १० सहस्त्र. पांचमे देवलोके ४ सहल. ६ सहस्र, ८ सहस्र. छठे देवलोके २ सहस,४ सहल, ६ सहस. सातमे हेवलोके १ सहस, २ सहस, ४ सहस्र, आठमे देवलोके ५००, १ सहस, २ सहस्र, नवमे दशमे देवलोके २५०, ५००, १०००. इग्यारमे बारमे देवलोके १२५, २५०, ५००.
हवे बारमे उद्योत कहे छे देवतानो देवीनो, आभरणनो, शुभ पुगलनो, ने विमाननो.
तेरमे देवाओ कहे छे. एकेका इंद्रने आठ आठ देवीओ छे. एकेकि देवी सोळ सोळ हजार रूप वैक्रेय करे, अने धणी पण एटला रूप वैक्रेय करे.
चौदमे लोकपाल कहेछे. एकेका इंद्रने चार चार लोकपाल छे. वारा पूर्वनिपरे जाणवा. सोम ने जमर्नु आयुष १ पल्यने १ पल्यना त्रिजा भागनुं अधिक जाणवू, वरुणर्नु देशे उणा २ पल्यनुं आयुष जाणवू वेशमण- पुरा बे पल्यनुं आयुष जाणवू.
पनरमे त्रायत्रिसक ते पूर्वनीपरे जाणवा. सोलमे अणिका ७ ते गंधर्व, नट, हय, गय, रथ, पाळा, वृषभ. सत्तरमे अणिकाना अधिपति एमज जाणवा.
आढारमे संघयण कहे छे. पहेलाथी ते चोथा देवलोक सुधी ६ संघयणनो धणी जाय पांचमे छठे देवलोके १ छेवटु वर्जिने पांच संघयणनो धणी उपजे. सातमे आठमे देवलोके ४ संघयणनो धणी जाय ते किलकु ने छेवटु ए २ वर्जिने. नवमे दशमे इग्यारमे बारमे देवलोके ३ संघयणनो धणी जाय.नव ग्रैवेयकमां २ संघयणनो पणी