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जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. एहवामां जो काल करे तो अनुत्तर वीमानमां जाय. पछि मनुष्य थइ मोक्ष जाय. अने जो सूक्ष्म लोभनो उदय थाय, तो कषाय अग्नि प्रकटे पछि पडे, दशमाथि पडे तो पहिला गुणठाणासुधि जाय. पण इग्यारमेथि चढवू तो नथि. उपशांत एटले ? उपशम्यो छे मोह सर्वथा. जले करी अग्नि ऊलव्यानिपरेनहि, पण ढांक्योछे माटे उपशांतमाह गुणठाणुं कहिये. बारसुं क्षीणमोह गुणठाणुं तेह-शुं लक्षण ? जे २८ प्रकृति ने सर्वथा खपावे, क्षपकश्रेणि, क्षायकभाव, क्षायकसमकित, क्षायकजथाख्यातचारित्र, करणसत्य, जोगसत्य, भावसत्य, अमायी, अकषायी, वीतरागी, भावनिग्रंथ, संपूर्ण संबुड, संपूर्ण भावितात्मा, महातपस्वी, महामुशिल, अमोही अविकारी, महाज्ञानी, महाध्यानी, वर्धमान परिणामी, अपडिवाइ थइ अंतर्मुहूर्त रहे ए गुणठाणे काल करवो नथि. पुनर्भव छे नहि छेहले समये पांच ज्ञानावरणिय, नव दर्शनावरणिय, पंचविध अंतराय क्षयकरणोधमकरि, तेरमा गुणठाणाने पहिले समये क्षयकरे केवल ज्योति प्रकटे माटे क्षोणतेक्षयकों छे मोह सर्वथा जेगुणठाणे, तेहने क्षीणमोह गुणठाणुं कहिये. तेरमुं सजोगी केवलि गुणठाणुं तेहर्नु लक्षण ? दश बोल सहित तेरमे गुणठाणे विचरे. सजोगी, सशरिरी, सलेशी, शुकललेशी, जथाख्यातचारित्र, क्षायकसमकित, पंडितवीर्य, शुकलध्यान, केवलज्ञान, केवलदर्शन, ए १० बोलसहित जघन्य अंतर्मुहुर्त उत्० देशेउणी पुर्वक्रोडिसुधि, विचरे घणा जोवने तारि प्रतिबोधि निहाल करिने बिना त्रिजा शुकलध्यानना पायाने ध्याइने चउदमे जाय. सजोगी ते शुभ मन, वचन, कायाना जोगसहित छे. बाहाज्य चलोपकरण छे. गमनागमनादिक चेष्टा शुभ सहित छे. केवलज्ञान, केवलदर्शन उपयोग