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________________ गुणस्थानद्वार. कालयि, भावयि निर्विकार अमायी विषयनिरवंछापणे जाणे सरदहे परुपे फरसे ते जीव जघन्य तेज भवे मोक्षजाय. उत्० त्रीजे भवे मोक्ष जाय. हवे अनियहि बादर ते सर्वथा प्रकारे निवा नथि. अंश मात्र हजि बादरसंपरायक्रिया रहि छे माटे अनियट्टिबादर गुणठाणुं कहिये. तथा आठमा नवमा गुणठाणाना शब्दार्थ घणा गंभीर छे ते अन्य पंचसंग्रहादिक ग्रंथ तथा सिद्धांतथि समजवा. दशमं सूक्ष्म संपरायगुगठाणुं तेहर्नु शुं लक्षण ? २७ प्रकृति ने क्षयोपशमावे, २१ प्रकृति पूर्वे कहि ते, अने हास्य १,रति २, अरति ३, भय ४, शोक ५, दुगंछा ६. एवं २७ प्रकृतिने क्षयोपशमावे तिवारे गौतमस्वामि हाथ जोडि मान मोडि श्रीभगवंतने पुछता हवा. स्वामिनाथ ते जीवने शुं गुण निपनो ?तिवारे भगवंते कयं ते जीव द्रव्यथि, क्षेत्रथि, कालथि, भावथि जीवादिक पदार्थ तथा नाकारसी आदी देईने छमासीतप,निरभिलाष,निर्वछक, निर्वेदकतापणे,निराशी, अव्यामोह,अविभ्रमपणे,जाणे सरदहे परूपे फरसे ते जीव जघन्य० तेजभवे मोक्ष जाय उत्० त्रीजे भवे मोक्ष जाय. सूक्ष्म थोडीक लगारेक पातलीसी संपरायक्रिया रहि छे तेहने सुक्ष्मसंपराय गुणठाणुं कहिये. इग्यारमुं उपशांतमोहगुणठाणुं तेहतुं शुं लक्षण ? २८ प्रकृति ने उपशमावे ते.२७ प्रकृति पूर्वे कहि ते, अने संजलनो लोभ १. एवं २८ मोहनीय कर्मनी प्रकृतिने उपशमावे सर्वथा ढांके, भस्म भारि प्रछन्न अग्निवत् तिवारे गौतमस्वामि हाथ जोडी मान मोडि श्रीभगवंतने पुछता हवा. स्वामिनाथ ते जीवने शुं गुण निपना? तिवारे श्रीभगवंते कधुं. ते जीव जीवादिक पदार्थ द्रव्यथि, क्षेत्रथि, कालथि, भावथि, नाकारसी आदि देइने छमासी तप वातराग भावे जथाख्यात चारित्रपणे जाणे सरदहे परूपे फरसे
SR No.022129
Book TitleJain Siddhant Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAjramar Jain Vidyashala
Publication Year1928
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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