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________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. अथ श्री गुणस्थानद्वार. गाथा. नाम, लवण, गुण ठिइ, किरिया, सत्ता, बंध, वेदेय, उदय, उदिरणा, चेव, निज्जरा, भाव, कारणा, १ परिसह, मग्ग, आयाय, जीवाय भेदे, जोग, उविऊग, लेस्सा, चरण, सम्मत्तं अप्पाबहुच्च, गुणठाणेहिं २ ४७ ए द्वार २२ नी गाथा २ कहि. हवे पहेला नामद्वार कहे छे. पहेलुं मिथ्यात्व गुणठाणुं. विजुं सास्वादान गु०, त्रिजुं समामिध्यात्व गु०, चाथुं अविरति सम्यक्त्वदृष्टि गु०, पांचमुं देशविरति गु०, छठु प्रमत्तसंजति गु०, सातमुं अप्रमत्तसंजति गु०, आठमुं नियट्टिबादर गु०, नवमुं अनियट्टिबादर गु०, दशमुं सुक्ष्मसंपराय गु०, इग्यारमुं उपशांतमाह गु०, बारमुं क्षिणमोह गु०, तेरसुं सजोगि केवल गु०, चउदमुं अजोगि केवल गुणठाएं. ए नामद्वार समाप्तं. हवे लक्षणगुणद्वार कहे छे. पहेला मिध्यात्व गुणठाणाना लक्षण कहे छे. श्रीवीतरागनि वाणीथी ओछु अधिक विपरीत शर्द्ध हे परुपे फरसे तेहने मिथ्यात्व कहिये. ओछी परुपणा ते केहने कहिये. जिम कोइ कहे जे जीव अंगुठा मात्र छे, तंडुल मात्र छे, शामा मात्र छे, दीपक मात्र छे, तेहने ओछी परुपणा कहिये १. अधिकी परूपणा ते केहने कहिये. एक जीव सर्व लोक ब्रह्मांड मात्रमां व्यापी रह्यो छे तेहने अधिकी परुपणा कहीये. २ विपरीत परुपणा ते केहने कहिये कोइ कहे जे पंच भूत थकि आत्मा उपना छे, अने एहने विनाशे जीव पण विणशे छे, ते जड छे, ते थकि चैतन्य उपजे विणशे इम कहे तेहने विपरीत परुपणा कहिये. ३. ए मीथ्यात्व इम नव पदार्थनुं विपरीतपणुं सरदहे परूपे फरसे
SR No.022129
Book TitleJain Siddhant Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAjramar Jain Vidyashala
Publication Year1928
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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