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जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. क्रोध, मान, माया, लोभ, एवं ११ प्रकृतिने क्षय करे तो क्षायकसमकित कहिये. अने ११ प्रकृ० ढांके उपशमावे तो उपसम समकित कहिये. अने ११ प्रकृतिने कांइक ढांके कांइक क्षय करे तेहने क्षयोपशम समकित कहिये. पांचमे गुणठाणे आव्याथको जीवादिक पदार्थ द्रव्यथि, क्षेत्रथि, कालथि, भावथि, नोकारसी आदी देइने छमासीतप जाणे सरदहे, परूपे शक्तिप्रमाणे फरसे, एक पच्चखाणथि मांडीने १२ व्रत ११ श्रावकनि पडिमां आदरे. जावत् संलेखणासुधि अनशन करि आराधे, तिवारे गैातमस्वामी हाथ जोडि मान मोडि श्रीभगवंतने पुछता हवा, ते जीवने शुं गुण निपनो? तिवारे श्रीभगवंते का, ज० त्रिजे भवे मोक्ष जाय, उ० १५ भवे मोक्ष जाय. ज० पहिले देवलोके उपजे, उन्० १२ मे देवलोके उपजे, तेने साधुना व्रतनि अपेक्षाये देशविरति कहिये, पण परिणामथि अत्तनि क्रिया उतरि गइ छे, अल्प इच्छा, अल्प आरंभ, अल्प परिग्रही, सुशिल, सुवति, धर्मिष्ट, धर्मति, कल्पउग्रविहारी, महासंवेगविहारी, उदासी, वैराग्यवंत, एकांतआर्य, सम्यगमागी, सुसाधु, सुपात्र, उत्तम, क्रियावादि, आस्तिक्य, आराधक, जैनमार्गप्रभावक, अरिहंतना शिष्य वर्णव्या छे, गीतार्थ जाणे छे, सिद्धांतनि शाख छे, श्रावकपणुं एक भवमा प्रत्येक हजारवार आवे ५. छठं प्रमतसंजतिगुणठाणुं तेहर्नु शुं लक्षण १५?प्रकृतिने क्षयोपशमावे ते ११प्रकृति पुर्वे कहि ते अने पच्चखाणावरणीय क्रोध, मान, माया, लोभ, एवं १५प्रकृतिने क्षयकरे तो क्षायिकसमकित कहिये. अने १५ प्रकृतिने ढांके तो उपसम समकित कहिये. अने कांइ ढांके ने कांइ क्षय करे तो क्षयोपशमसमकित कहिये. तिवारे गौतमस्वामि हाथ जोडि मान मोडि श्रीभगवंतने पुछता हवा. ते जीवने सं.गण निपना ? तेवारे श्री