________________
जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. १५७ छे ३४ ऋषभकुट ते १ भरतनो, १ इरवतनो, अने ३२ विजयना ३२, एवं ३४. अने भद्रशाल वनना ८, देवकुरुना ८, उत्तरकुरुना ८एवं सर्व मळीने ५८ कुट भूमी उपरना थया एवं सर्व मळीने ५२५ कुट थया. इति ५ मो कुटद्वार समाप्त. ___हवे ६ ठो तिर्यद्वार कहे छे तिर्य क० जेबुद्विप मध्ये १०२ तिर्थ छे ते केम ? ३२ विनय, १ भरत, १ इरवत, एवं ३४ ठेकाणे छे एकेकामां त्रण त्रण तिथ छे मागध, वरदाम, प्रभास, ए ३ ते अनि खुणे, नैरुत्य खुणे, वायव्य खुणे, एवं ३४ तेरी १०२ तिय थाय. इति छठो तिर्थद्वार समाप्त.
हवे ७ मो श्रेणि द्वार कहेछे सेहिओक० जंबुद्विपमाहि १३६ श्रेणिरो छे ते वैताब्य पर्वत उपरे दश दश जोजन उंचा चढिये तिहां १ दक्षिणे ने १ उत्तरे ए बे विद्याधरनि श्रेणियो छे, ते माहि भरतना वैताढ उपरे गगन वलभादिक ५० नगर दक्षिगनी श्रेणिये छे, अने रथ चक्रवालादिक ६० नगर उत्तरनी श्रेणिये छे. एमज इस्वतना वैताढ उपरे ६० नगर दक्षिणनी श्रेणिये छे, अने ५० नगर उत्तरनी श्रेणिये छे, महाविदेहना ३२ वैताह उपरे दक्षिण उत्तरनी श्रेणीये पंचावन पंचावन नगर छे, सर्व मळीने ३७४० नगर विद्याघरनी श्रेणीये छे एवं ३४ दु ६८ विद्याधरनी श्रेणि छे. वळी विद्याधरनी श्रेणियो १० जोजन उंचा चडिये तिहां आभियोगिया देवतानी २ श्रेणि आवे. १ दक्षिणे, ने १ उत्तरे एवं ३४ दु ६८ श्रेणी आभियोगिया देवतानी छे. एवं सर्व मळीने ६८ विद्याधरनी ने ६८ देवतानी एवं १३६ श्रेणीयो छे, इति ७ मो श्रेणि द्वार समाप्तं,
हवे ८ मो विजयद्वार कहे छे. विजय क० उंबुद्विप मांहि ३४ विजयरूप स्थानक छे तेना नाम, कछे १, सुकछे २, महाकछे ३,