________________
जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह.
कना समुर्छिम मनुष्य. ते एकसो एक क्षेत्रना गरभज मनुष्यना अपर्याप्ता, ने एकसो एक पर्याप्ता एवं २०२, ने एकसो एक क्षेत्रना समुर्छिम मनुष्यना अपर्याप्ता. एवं त्रणसें त्रण भेदना एकविसमा मनुष्यना दंडक थयो . हवे बाविसमा वाणव्यंतर नो ise कछे. तेहनी सोल जाति, पिसाच, भूत, जक्ष, राक्षस, किनर, किंपूरुष, महोरग, गंधर्व, आणपनी, पाणपनी इसीबाइ, भूइवाइ, कंदिय, महाकंदिय, कोहंड, पयंगदेव, इति बाविसमो वाणव्यंतर नो दंडक संपूर्ण. हवे त्रेविसमा जोतीषी ना दंडक कहे छे तेहनी दस जाति, चंद्रमा, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, वारा, ए पांच चल ते अद्विीप मध्ये छे अने पांच स्थिर ते अद्विीप बाहीर छे. एवं दस जात, वे चंद्रमाने वे सूर्य जंबुद्वीप मध्ये छे. प्यार चंद्रमाने च्यार सूर्य लवण समुद्र मध्ये छे. बार चंद्रमाने बार सूर्य धातकीखंड मध्ये छे, बेतालिस चंद्रमाने, बेतालिस सूर्य कालोदधि समुद्र मध्ये छे, बहुतेर चंद्रमा, बहुतेर सूर्य पुष्करार्ध्य द्विप मध्ये छे. एवं सर्व मलीने मनुष्य क्षेत्रमां एकसो बत्रीस चंद्रमा एकसे बीस सूर्य परिवार सहित चल छे परिवार ते जिहां एक चंद्रमा एक सूर्य तिहां अठासी ग्रह अठाविस नक्षत्र छास हजार नवसे पंच्यातेर कोडा कोडी तारा छे. एवं सर्व चंद्रमा सूर्यना परिवार गणवेो. असंख्याता चंद्रमा असंख्याता सूर्य परिवार सहित मनुष्यक्षेत्र बाहेर असंख्याता द्विपसमुद्र मांहि स्थिर छे. एवं दस भेदना वेविसमा ज्योतिषीना दंडक था. ed चाविसमा वैमानिकनो दंडक कहे छे. तेहना छविस भेद छे. वार, देवलोक, नव ग्रीवेयक, पांच अनुत्तर विमान, एवं छवीस. हवे तेश्मा नाम कहे छे. सुधर्म, इसान, सनंतकुमार, माहेंद्र, अशोक,