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जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह.
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नासिकावधी. चरिद्रीने इंद्रीचार. आँख वधि समुद्घात त्रण, वेदनी, कषायने मारणांतिक ए त्रण. संज्ञी के० ते असंज्ञी, वेद एक नपुंसक. पर्या पांच मन नही. द्रष्टि बे, समकितद्रष्टी ने मिथ्यात द्रष्टी. दर्शन पेद्री इंद्रीने एक अचक्षूदर्शन. चउरिंद्रीयने वे दर्शन. चक्षूदर्शन ने अचक्षदर्शन. ज्ञान वे, मतिज्ञान ने श्रुतज्ञान, अज्ञान बे मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान. जोग चार उदारिक, उदारिकनौ मिश्र, कार्मणकाय जोग, व्यवहार वचन उपयोग बेइंद्री तेइंद्री ने पांच. वे ज्ञान वे अज्ञान, एक अचक्षुदर्शन ए पांच चंडरिंद्रीने उपयोग छ, बे ज्ञान, वे अज्ञान, वे दर्शन ए छ. तहा कहेतां तिमज आहार ले. जघन्य अने उत्कृष्टो छदिसंनो. तथा त्रण प्रकार आहार ले. ओज, राम, ने कवल, ऊववाय ते आवीने उपजे दस दंडकना. पांच स्थावर त्रण विंगकेंद्री मनुष्यने तिर्यच ए दस स्थिति बेरिंद्रीनी जघन्य अंतर्मुहूर्त्तनी उत्कृष्टि बार वरसनी. तेइंद्रींनी जघन्य अंतर्मुहूत्तनी उत्कृष्टी उगणपचासदिवसनी चउरिंद्रीयनी जघन्य अंतर्मुहूर्त्तनी उत्कृष्टी छ महिनानी समेोहिया मरण अने असमाहिया मरण वे छे. चवण ते चविने जाय दस दंडकमां, पांच स्थावर, ऋण विगलेंद्री, मनुष्य ने तिर्यचमां जाय, गइ ते मरीने बेगतिमां जाय, मनुध्य ने तिचिमां आगड़ ते आवे पण बेगतिना मनुष्यने तिर्यचनो. प्राण बेरिंद्री ने छ प्राण, बेइंद्रीना वे प्राण, कार्यबल, स्वासास्त्रास, आउखू, वचन, ए छ तेरिंद्री ने सात प्राण. ते नासिका वी. चरिंद्रीने आठप्राण आंख वधी. जोग बे. वचनजोग ने कायजोग. इति त्रण विगलेंद्रिना ऋण दंडक संपूर्ण. हवे विसमा तिर्यच पंचेंद्रिीना दंडक कहे छे. हवे पांचे समु
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