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जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह.
बे गतिमां जाय. अने नवमांथी मांडोने सर्वार्थसिद्ध मुधिना एक मनुष्यनी गतिमां जाय. आगइ ते पेहेलाथी मांडीने आठमां देवलोक लगे वे गतिनो आवे. मनुष्य ने त्रिचनो अने नवमाथी मांडीने सर्वार्थसिद्ध लगे एक मनुष्यनो आवे. प्राण दस. जोग त्रण. इतिश्री चोविसमा वैमानिकनो दंडक संपूर्ण. ... ___ हवे सिद्धनो द्वार कहे छे. सिद्धने सरीर नथी. अवघेणा सिद्धनी अरूपि जीवना प्रदेशना घननी, ज० एक हाथने आठ
आंगुलनी, मझम चार हाथने सेोल अंगुलनी, अने उत्कृष्टी त्रणसें तेत्रीस धनुष ने बत्रीस अंगुलनी. सिद्धने संघयण नथी, सिद्धने संठाण नथी. सिद्धने कषाय नथी. सिद्धने संज्ञा नथी. सिद्धने लेस्था नथी. सिद्धने इंद्रीय नथी. सिद्धने समुद्घात नथी. सिद्ध संज्ञी असंही नथी. सिद्धने वेद नथी, सिद्धने प्रजा नथी. सिद्ध समकितद्रष्टी छे, सिद्धने एक केवल दर्शन छे. सिद्धने एक केवल ज्ञान छे. सिद्धने अज्ञान नथी. सिद्धने जोग नथी. सिद्धने उपयोग बे छे. केवलज्ञान, केवल दर्शन, सिद्धने आहार नथी. उववाय ते आवीने उपजे, एक दंडक ते मनुष्यना. सिद्धनी स्थितिनो छेडो नथी. सिद्धने मरण नथी. सिद्धने चवई नथी. गइ ते मरीने सिद्धने कोइगतिमां जावू नथी. आगइ ते सिद्धमा एक मनुष्यनो आवे. सिद्धने प्राण नथी. पण भाव प्राण बे छे, केवल ज्ञान ने केवल दर्शन. सिद्धने जोग नथी. इति सिद्धना द्वार इतिश्री लधुदंडकना बोल संपूर्ण.
अथ श्री गतागतना बोल. पहेलीनर्के आगत २५ भेदनी ते १५ कर्मभूमी, ५ संज्ञी