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________________ श्री सिद्धांत प्रकरण संग्रह. चउरिंद्रिय, ए ३ ना अप्रजाप्ता ने ३ ना प्रजाप्ता ए ६ एवं २८ जलचर, थलचर, उरपर, भुजपर, खेचर ए ५ समुर्छिम ने ५ गर्भज एवं १० ना अप्रजाप्ता ने १० ना प्रजाप्ता ए २० एवं ४८ भेद तिर्येचना कवा. हवे १४ भेद नारकिना कहे छे. सात नरकना नाम, घमा, वंशा, शिला, अंजणा, रिठा, मघा, माघवइ. हवे ए ७ ना गोत्र कहे छे. रत्नप्रभा शर्करप्रभा, वालुप्रभा, पंकप्रभा, घुमप्रभा, तमप्रभा, तमतमाप्रभा ए ७ ना अप्रजाप्ता ने ७ ना प्रजाप्ता एवं १४ भेदन रकिना कला एवं सर्व मिलीने ५६३ भेद जीवना जाणवा इति जीवतत्त्व समाप्तं १ ୭ वे जीवतत्वना १४ भेद कहे छे. धर्मास्तिकायनो स्कंध, देश, प्रदेश, अधर्मास्तिकायनो स्कंध, देश, प्रदेश, आकाशास्ति कायनेो स्कंध देश, प्रदेश. अद्धासमयकाल, ए १० भेद अरुपि अजीवना कथा. हवे रुपि अजीवना ४ भेद कहे छे. पुद्गलास्तिकाय ना स्कंध, देश प्रदेश, परमाणु पुद्गल एवं १४ हवे व्यवहार विस्तारनयेकरी ५६० भेद अजीवतत्वना कहे छे. तेहमां ३० भेद अरुपि अजीवना कहे छे. धर्मास्तिकाय द्रव्यथकि एक क्षेत्रथकि आखा लोक प्रमाणे, कालथ कि, अनादिअनंत, भावथकि अवर्णे, अगंधे, अरसे, अफासे, अमूर्ति, गुणथकि चलणसहाय, अधर्मास्तिकाय द्रव्यथकि, एक, क्षेत्रथकि आखा लेाकप्रमाणे, कालयकि अनादि अनंत, भावयकि, अवर्णे, अगंवे, अरसे, अफासे, अमूर्ति, गुणयकि स्थिर सहाय, आकाशास्तिकाय द्रव्यथकि एक, क्षेत्रथकि लोकालोक प्रमाणे, कालयकि अनादि अनंत, भावयकि, अवर्णे, अगंवे, अरसे, अफासे, अमूर्ति, गुणथकि अवगाहनादान, हवे काल. द्रव्यथकि अनेक, क्षेत्रथ कि अदिद्विपप्रमाणे काय कि अनादि अनंत, भावयकि, अवर्णे, अगंधे, अरसे, अफासे,
SR No.022129
Book TitleJain Siddhant Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAjramar Jain Vidyashala
Publication Year1928
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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