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________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. १९१ वर्जीने ने एक होय तो माया हत उ० देशे उणी पूर्वक्रोड वर्जीने तेमां क्रोध,मान,मायानी | ए द्वार २१. भजना लोभनी नियमा होय ४ २२ बंध द्वार. पुलाक ७ निग्रंथ उपसम तथाक्षीण कषायी कर्म बांधे. आउखु वर्जीने. बकुहोय, स्नातक क्षीण कषायी होय | सने प्रति सेवना७-८ कर्म बांधे, ए द्वार १९ मो. ७ बांधे तो आउखुं वर्जीने.कषाय २० लेश्याद्वार. आगल्या कुशील ६, ७, ८ कर्म बांधे, ३ नियंठामां उपली ३ लेश्या सात कर्म बांधे तो आउखुं वहोय. कषाय कुशीलमां ६ लेश्या | जीने, ६ कर्म बांधे तो आयुष्य होय ने निग्रंथ ने शुकल लेश्या तथा मोहनी वर्जीने. निग्रंथ १ स्नातकमां परम शुक्ल लेश्या | साता वेदनीकर्म बांधे.स्नातक १ अने अलेशी पण होय ए द्वार२०. साता वेदनी बांधे ने स्नातक अ___ २१ परिणाम द्वार. छ ए | बंधक पण होय. ए द्वार २२ मो. नियंठामां वर्द्धमान परिणाम होय २३ वेद द्वार.आगल्या ४ तो आगल्या ४ मां जघन्य १ आठे कर्म वेदे, निग्रंथ मोहनी समो उ० अंतर्मुहूर्त, उपल्या २ कर्म वर्जीने ७ कर्म वेदे,स्नातक ना जघन्य उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त. ४ का ४ कर्म वेदे वे० आ० ना० गो० हवे हायमान परिणाम आगल्या४ | ए ४ वेदे. ए द्वार २३ मो. ना ज० एक समो उ० अंत० उ | २४ उदीरणा द्वार. पुलाक पल्या २ ना हायमान परिणाम | ६ कर्मनी उदीरणा करे आउखं होय नहि. अवस्थित परिणाम १, वेदनी २ वर्जिने. बकुसने आगल्या ४ ना ज० १ समो प्रतिसेवनाआठ कर्मनी उदीरणा उ० ७ समा, निग्रंथ ज० १ समो| करे अने जो ७ नी करे तो आउ० अंत०, स्नावकना ज० अंत- । उखु बजिने.६नी करे तोआउखु
SR No.022129
Book TitleJain Siddhant Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAjramar Jain Vidyashala
Publication Year1928
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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