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(२३)
५॥ अथवा नित्यनैमित्तिक कर्म करनेमे जो क्लेश होवे है तिससे ही संचितपाप नाश होवे है, बाकी जे पुण्यसंचित है तिसते आगामी जन्मविषे केवल सुखभोग करके मुक्तिको प्राप्त होवे है. अथ. वा कामनाके अभावत संचितपुण्य नाश पावे है, यांते शुभाशुभकर्मोके अभाव होनेते स्वर्ग वा नरकको मुमुक्षु प्राप्त होवेगा नहीं किं तु मुक्तिको ही प्राप्त होवेगा. इस रीतिसे मीमांसक मोक्ष माने है. इति मोक्षवर्णनं.
६॥ दे शिष्य यह जो मीमांसकमतानुसारी मोक्ष तुमको कहा है सो वेदविरुद्ध होनेसे समीचीन नही. 'ऋते ज्ञानान्न मुक्तिः 'ज्ञानसें विना मुक्ति नही होती, इस श्रुतिवाक्यते विरोधी जो कर्मसे मुक्ति मानी है सो अंगीकार नही है. और जो कहा है नित्य, नैमित्तिक कर्मके नही करनेते जो पाप होवे है सो तिनोंके करनेसे होवे नही यही नित्य, नैमित्तिक कर्मोंका फल है तिसते अ. धिकफल नही, सोभी भाष्यकारके वचन साथ विरोधी होनेसे तिनोके वाक्य त्यागने योग्य है.
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