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३॥ अब जैसे कर्मसे मोक्षमाने है सोभी तुम श्रवण करो. काम्यकर्म तथा निषिद्धकर्म न करना यांते स्वर्गको वा नरकको नही जावेगा; और नित्य, नैमित्तिक कर्म ये दोनो करने चाहिये, काहेते जो तिनोके न करनेसे जो पाप होवे है सो कम करनेसे होवेगा नही. यही नित्यनैमित्तिक कर्मों का फल जानना, तिसते अधिक फल नही. और जो ज्ञातपाप होवे तो असाधारण प्रायश्चित्तसे तिस पा. पकी निवृत्ति करनी चाहीये. और जो अज्ञात पाप होवे तथा संचित पाप है तिन सर्वकी निवृत्ति वास्ते साधारण प्रायश्चित्तकर्म करने चाहीये. तिसते सर्व पाप नाश होवे है.
४॥ और जो गंगास्नान, हरिनामोच्चारण, साधारण प्रायश्चित्तकर्म है ते पापनाश करके सकामीयोंको स्वर्गकीभी प्राप्ति करे है. तथा निष्कामीयाको चित्तकी शुद्धिद्वारा मोक्षकभिी प्राप्ति करे है. तिस मुमुक्षु निष्कामी पुरुषका संचितपुण्यकर्म ज्ञा. नीके कर्मसमान नाशकों प्राप्त होवे है. अथवा मुमुक्षु होनेते योगी समान एक जन्मविषे पुण्यकर्मका फलनोगकरके मुक्ति पाव है. यांते मुमुक्षु एकजन्म पावे है अधिक जन्म नही.
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