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तत्त्वार्थसूत्रे . मूलसूत्रम्- "दुविहं दबिदियं निवत्ति-उवगरणं य-" ॥२०॥
छाया द्विविधं द्रव्येन्द्रियम् , निवृत्तिः उपकरणञ्च-".॥२०॥
तत्त्वार्थदीपिका--पूर्व भावेन्द्रियं द्वैविध्येन प्ररूपितम्, सम्प्रति द्रव्येन्द्रियं प्ररूपयितुमाहदुविहं दविदियं निवत्ति-उवगरणं य-, इति । द्रव्येन्द्रियम् द्विविधम् , निर्वृत्तिः-उपकरणञ्चेति ।
तथाच- निवृत्तीन्द्रिय-उपकरणेन्द्रियभेदेन द्रव्येन्द्रियं द्विविधम् , तत्र-स्वरूपभेदाभ्यां निर्वतनं निष्पादो निर्वत्ति: अकारनिष्पत्तिः तत्तदिन्द्रियाणामाकारविशेषो निर्वत्तिः प्रतिविशिष्टसंस्थानोत्पत्तिरित्यर्थः निर्वृत्तिरूपमिन्द्रियं निवृत्तीन्द्रियम् । तच्च द्विविधं बोध्यम् , आभ्यन्तरं-बाह्यञ्च । तत्रघनरूपव्यवहाराङ्गुलाऽसंख्येयभागप्रमितानां शुद्धानां जीवप्रदेशानां प्रतिनियतचक्षुरादीन्द्रियसंस्थानेनाऽवस्थितानामभ्यन्तरवृत्तिविशिष्टम् आभ्यन्तरनिर्वृत्तीनिन्द्रियम् , तेषु चाऽऽत्मप्रदेशेषु इन्द्रियव्यपदेशशालिषु नामकर्मोदयापादिताऽवस्थाविशेषरूपप्रतिनियतसंस्थानपुद्गलप्रचयरूपं बाह्यनिर्वृत्तीन्द्रियमुच्यते ।
उपक्रियतेऽनेनेत्युपकरणम् येन निर्वृत्तीन्द्रियस्योपकारः क्रियते तदुपकरणेन्द्रियम् । तदपिद्विविधम् , आभ्यन्तर-बाह्यभेदान् , तत्राभ्यन्तरं चक्षुषः कृष्ण-शुक्लमण्ड - । बाह्यन्तु-अक्षिपत्रपक्ष्मद्वयादिकम् , तथाच-उभयमपिनिर्वृत्युपकरणेन्द्रियं पुद्गलपरिणामरूपं पूर्वोक्तभावेन्द्रियोपकरणकारणत्वात्
मूलसूत्रार्थ ॥ दुविहं दबिदियंनिवत्ति इत्यादि । द्रव्येन्द्रिय दो प्रकार की है-निवृत्ति और उपकरण ॥२०॥
तत्वार्थदीपिका-भावेन्द्रिय के दो भेद कहे जा चुके हैं, अब द्रव्येन्द्रिय को प्ररूपणा करने के लिए कहते हैं-द्रव्येन्द्रिय के दो भेद हैं-निवृत्ति और उपकरण । विभिन्न इन्द्रियों के अलग-अलग आकार का उत्पन्न होना निवृत्ति रूप इन्द्रिय को निर्वृत्ति-इन्द्रिय कहते हैं । निर्वृत्ति दो प्रकार की होती है-आभ्यन्तर और बाम । धनरूप व्यवहारांगुल के असंख्येय भाग परिमित, चक्षु आदि इन्द्रियों के आकार में स्थित शुद्ध जीव प्रदेशों की आभ्यन्तर वृत्ति से युक्त आभ्यन्तर निर्वृत्ति इन्द्रिय कहलाती है । उन आत्मप्रदेशों में, जो इन्द्रिय कहलाते हैं, नामकर्म के उदय से उत्पन्न अवस्था विशेष रूप नियत आकार वाले पुद्गलों का समूह बाह्य निवृत्ति है। तात्पर्य यह है कि श्रोत्र आदि इन्द्रियों के आकार में पुद्गलों की जो रचना है वह बाह्य नि त्ति कहलाती है। यह रचना नामकर्म के उदय से होती है ।
जो उपकार करता है उसे उपकरण कहते हैं। अभिप्राय यह है कि निर्वृत्ति इन्द्रिय का उपकार करने वाले को उपकरणेन्द्रिय कहते हैं । उपकरण के भी दो भेद हैं-आभ्यन्तर और बाह्य । नेत्र का जो काला और श्वेत मंडल है, वह आभ्यन्तर उपकरण है और पलक तथा बरौनी आदि बाम उपकरण हैं । इस प्रकार ये दोनों निर्वृत्ति और उपकरण इन्द्रियाँ पौद्