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ताओ उपनिषद भाग
रखते हैं। निकट जो आता है उसके सामने बुरा भी प्रकट हो जाएगा; तुम अपनी सहज यथार्थता में जाहिर हो जाओगे। तुम डरते हो; वह दिखाने योग्य रूप नहीं तुम्हारा, वह बताने योग्य नहीं है।
तो जैसे घरों में तुम्हारा बैठकखाना होता है, जिसको तुम सजा कर रखते हो, ऐसे तुम्हारे व्यक्तित्व का बैठकखाना है, जिसको तुम सजा कर रखते हो। वहां तक मेहमानों को तुम ले जाते हो, उससे भीतर नहीं। क्योंकि उसके भीतर तुम्हारे जीवन का यथार्थ है। अपने जीवन के यथार्थ में जिसने बहुत कुछ छिपाया हो-रुग्ण, क्रोध, घृणा, हिंसा, वैमनस्य, द्वेष, ईर्ष्या, मत्सर-वह किसी को पास न आने देगा। वह भयभीत होगा कि अगर कोई पास आया तो यह सब जान लेगा; वह जीवन के अंतःगृह में प्रवेश कर जाएगा। और वहां तो तुम खुद भी जाने से डरते हो, दूसरे को ले जाने की तो बात दूर। तुम खुद भी वहां पीठ किए रहते हो। तुम खुद भी देखने से डरते हो, क्योंकि इतना कूड़ा-कचरा, इतनी गंदगी, इतनी दुर्गंध वहां है।
प्रेम के लिए एक ही बाधा है कि तुम अपने से डरे हुए हो और शायद तुम दूसरे को पास न आने दो। तो हर आदमी ने कवच बना लिया है अपने चारों तरफ, वह उसके भीतर जीता है। उस कवच के बाहर वह हाथ निकालता है-लोहे के कवच के बाहर-हाथ मिला कर फिर हाथ को भीतर ले लेता है। उसी कवच के भीतर से थोड़ा सा मुस्कुराता है; उसी कवच के भीतर से देखता है।
लेकिन कवच के बाहर जब तक कोई न आए तब तक प्रेम नहीं घट सकता। प्रेम का अर्थ है : दूसरे को अपना इतना बना लेना कि कुछ छिपाने को न रहे, दूसरे को अपना इतना मान लेना कि जैसे वह तुम ही हो, अब उससे छिपाना क्या! अगर तुम अपने प्रेमी से कुछ छिपाते हो तो अभी प्रेम में फासला है-कुछ भी हो वह छिपाना। अगर तुमने अपने प्रेमी के सामने सब खोल दिया है-सब, बेशर्त, कुछ भी छिपाया नहीं है तो ही तुम्हारे जीवन में वह घटना घटेगी जिसको प्रेम कहते हैं।
नहीं तो तुम अपनी सुरक्षा तैयार किए हुए हो। प्रेमी से भी तुमने बहुत सी बातें छिपा रखी हैं। और बड़े मजे की बात है, अक्सर ऐसा हो जाता है कि तुम अजनबियों से ऐसी बातें कह देते हो जो तुमने प्रेमियों से छिपा रखी हैं। ट्रेन • में चलते हो, ऐसे ही ऐरा-गैरा कोई आदमी रास्ते में मिल जाता है, उससे तुम ऐसी बातें कह देते हो जो तुमने कभी अपनी मां से नहीं कहीं, अपने पिता से, अपनी पत्नी से नहीं कहीं। क्यों? क्योंकि अजनबी से कोई खतरा नहीं है, घड़ी भर बाद तुम अपने स्टेशन उतर जाओगे, वह कहीं और चला जाएगा। उससे कुछ लेना-देना नहीं है। लेकिन जिनसे चौबीस घंटे लेना-देना है उनसे तो छिपाना पड़ेगा: उनसे खतरा है।
यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि अजनबियों के साथ लोग अपने जीवन के बड़े गहरे कन्फेशन कर देते हैं, लेकिन निकट के लोगों से छिपाते हैं। क्योंकि अजनबी न तुम्हारा नाम-धाम जानता है, न तुममें उत्सुक है। तुम कहते हो तो इसलिए सुन लेता है कि चलो ठीक है, सफर है, साथ बैठे हैं तो सुन लो। अन्यथा तुम छिपाए रहते हो।
मुल्ला नसरुद्दीन एक यात्रा पर जा रहा था। और जैसा कि पति जानते हैं, उसने अपनी पत्नी से कहा कि बहुत जरूरी काम है, तीन दिन में निपट जाएगा, ऐसी आशा करते हैं। काम-धंधे की बात है, न भी निपटे, ज्यादा समय भी लग जाए, तो मैं तुम्हें वहां से कार्ड डाल दूंगा कि कितनी देर और रुकना पड़ेगा। पत्नी ने कहा, तुम फिक्र मत करो। तुम्हारे कोट में से कार्ड निकाल कर मैंने पढ़ लिया है। वह मिल गया कार्ड कि तुम पंद्रह दिन के पहले लौटने वाले नहीं हो। और यह कोई धंधे की यात्रा नहीं है।
. पति हैं. पत्नी हैं. मित्र हैं, पिता हैं, बेटे हैं, एक-दूसरे से बहत कछ छिपा रहे हैं। उसी छिपाने में प्रेम मर जाता है, क्योंकि प्रेम किसी तरह की गुप्तता नहीं चाहता। प्रेम चाहता है प्रकटता, प्रेम चाहता है सहजता, प्रेम चाहता है खुला आकाश।
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