Book Title: Tao Upnishad Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 384
________________ ताओ उपनिषद भाग६ 'जहां जिन्सों की पूर्ति दस गुनी या सौ गुनी हो, उससे ज्यादा जितना वे खर्च कर सकते हैं।' यह कैसे होगा? आवश्यकता और वासना का फर्क खयाल में ले लेना चाहिए तो यह हो सकता है। आवश्यकताएं तो बहुत थोड़ी हैं आदमी की आवश्यकताएं तो पूर्ण हो सकती हैं, कोई अड़चन नहीं है; सब की पूरी हो सकती हैं। वासना नहीं पूरी हो सकती, वासना तो एक आदमी की नहीं पूरी हो सकती; सबका तो सवाल ही नहीं है। _वासना का अर्थ है: जो तुम्हें नहीं चाहिए उसकी मांग। वह कैसे पूरी होगी? आवश्यकता का अर्थ है : जो जरूरत है उसकी मांग; वह पूरी हो सकती है। भोजन चाहिए, पानी चाहिए, निश्चित, कपड़ा चाहिए, छप्पर चाहिए। पूरा हो सकता है। इसमें कौन सी अड़चन है? और जब यह पूरा हो जाए तो तुम वृक्ष के नीचे बैठ कर बांसुरी बजा सकते हो। इसके पूरे होने में अड़चन कहां है? पशु-पक्षी पूरा कर लेते हैं; वृक्ष खड़े-खड़े पूरा कर लेते हैं, चल कर भी कहीं नहीं जाते; तो आदमी पूरा न कर सकेगा-जो शिखर है, जीवन के विकास की सर्वोत्तम कृति है? बड़ी सरलता से पूरा हो सकता है। जमीन बहुत खुशहाल थी; जमीन फिर खुशहाल हो सकती है। आदमी की विक्षिप्तता रोकनी जरूरी है। कुछ चाहें गैर-जरूरी हैं। जैसे तुम्हें कोहिनूर चाहिए। अब कोहिनूर को खाओगे, पीओगे, क्या करोगे? बच्चा बीमार होगा तो कोहिनूर की दवाई बनाओगे? भूख लगेगी, कोहिनूर से पेट भरेगा? लेकिन तुम तैयार हो कि चाहे भूखे रहना पड़े, चाहे बच्चा मर जाए, लेकिन कोहिनूर होना चाहिए। पागल मालूम होते हो। कोहिनूर को सिर पर रख कर घूमोगे? जापान में ऐसा हुआ। एक बड़ा फकीर था। सम्राट उससे प्रभावित हो गया। और जब सम्राट प्रभावित होते हैं तो सम्राटों की अपनी भाषा, अपना ढंग, अपना पागलपन। प्रभावित हो गया तो उसने बड़े बहुमूल्य हीरे-जवाहरातों जड़ी हुई एक पोशाक बनवाई मखमल की, एक ताज बनवाया। क्योंकि सम्राट का गुरु! ताज और पोशाक लेकर वह उस फकीर की पहाड़ी पर गया जहां फकीर एक झाड़ के नीचे रहता था। और उसने उसे भेंट किया। फकीर ने कहा, तुम दुखी होओगे अगर लौटाऊं, लेकिन मेरी भी फजीहत मत करवाओ। सम्राट ने कहा, मतलब? उस फकीर ने कहा, यहां न तो कोई आदमी आता न जाता। और राजधानियों से तो यहां कोई आता ही' नहीं, जो इन कपड़ों को समझ सकता है और इस ताज को समझ सकता है। यहां तो जंगली जानवरों से मेरी दोस्ती है; हिरण हैं, मोर हैं, यही मेरे पास आते-जाते हैं। वे बहुत हंसेंगे और मेरी मजाक उड़ाएंगे कि यह आदमी देखो, पागल हो गया। यह क्या पहने हुए है! तो मेरी फजीहत मत करवाओ। मैं स्वीकार कर लेता हूं, फिर तुम इन्हें ले जाओ। क्योंकि यह भाषा यहां बिलकुल बेकार है। इसका मैं करूंगा क्या? और ये पक्षी हंसेंगे, जानवर हंसेंगे। बड़ी बेइज्जती होगी। उसने ठीक कहा। पशु-पक्षी हीरे-जवाहरातों की फिक्र नहीं करते। लेकिन क्या उनके सौंदर्य में कोई कमी है? जब मोर नाचता है तो कौन से कोहिनूर उसका मुकाबला कर सकते हैं! लेकिन तुम नाच भूल गए; अब तुम्हें कोहिनूर चाहिए। जब कोयल गाती है तो कौन से कोहिनूर की जरूरत है? लेकिन तुम गीत भूल गए; तुम्हें कोहिनूर चाहिए। जीवन बड़ा सरल हो सकता है, जरा सी समझ होनी चाहिए। आवश्यकता बराबर पूरी करो। क्योंकि आवश्यकता पूरी न होगी तो तुम जीओगे कैसे? गीत कैसे गाओगे? नाचोगे कैसे? परमात्मा का धन्यवाद कैसे दोगे? आवश्यकता निश्चित पूरी करो। लेकिन थोड़ा समझने की कोशिश करो कि आवश्यकता वह है जो जरूरी है, वासना वह है जो बिलकुल गैर-जरूरी है; जिसका कोई उपयोग नहीं है। जिसका एक ही उपयोग है कि वह अहंकार को भरती है। जिसके पास कोहिनूर है, उसका अहंकार मजबूत होता है; बस। वासना वह है जो अहंकार को भरती है; आवश्यकता वह है जो शरीर को तृप्त करती है। तुम तृप्ति की खोज करो। तुम्हारा निसर्ग तृप्त हो। 374

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