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राज्य छोटा और निसर्गोन्मुख हो
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और काम व्यस्त करेगा भी नहीं, अगर तुम आवश्यकताओं पर ही ठहरे रहो। काम की व्यस्तता आती है। वासना से। कमा लीं दो रोटी, पर्याप्त है। फिर तुम पाओगे फुर्सत जीवन को जीने की। अन्यथा आपाधापी में सुबह होती है सांझ होती है, जिंदगी तमाम होती है। मरते वक्त ही पता चलता है कि अरे, हम भी जीवित थे ! कुछ कर न पाए। ऐसे ही खो गया; बड़ा अवसर मिला था !
'लोग अपने जीवन को मूल्य दें।'
और लाओत्से बड़ी अनूठी बात कहता है, 'और दूर-दूर यात्रा न करें।'
लोग दूर-दूर की यात्रा क्यों करते हैं? दूर-दूर की यात्रा अंतर्यात्रा से बचने का साधन है। भीतर न जाकर, यहां-वहां जाते हैं। चले काशी। कहां जा रहे हैं? तीर्थयात्रा पर जा रहे हैं। भीतर जाते, वहां है काशी । चले काबा । हज करने जा रहे हैं, हाजी होना है। भीतर जाते, वहां है काबा। वहां मोहम्मद भी, वहां कृष्ण भी, वहां बुद्ध भी, वहां तुम्हारा जीवन का सर्वोत्तम रूप विराजमान है। वहां पुरुषोत्तम बैठा है।
लाओत्से कहता है, लोग दूर-दूर प्रव्रजन न करें, यहां-वहां न जाएं। क्योंकि बाहर की यात्रा में समय खो जाता है; भीतर की यात्रा के लिए मौका नहीं मिलता। और जाकर करोगे भी क्या ? पक्षी वहां भी यही गीत गाते हैं; वृक्ष वहां भी यही फूल खिलाते हैं; आकाश वहां भी ऐसा ही है और ऐसे ही तारे हैं।
मेरे पास लोग आ जाते हैं सारी दुनिया से यात्रा करते। वे कहते हैं कि बस एक दिन यहां, फिर नेपाल जाना है। तुम यहां किसलिए आए ? कि बस आना था। लंदन से यहां आना था; यहां से नेपाल जाना है ! नेपाल से कहां जाओगे ? काबुल जाना है। तो ऐसे ही जाते-जाते-जाते चले जाओगे ? रुकोगे कहीं ? नहीं, वे कहते हैं कि बहुत दिन की अभिलाषा है कि नेपाल जाना है। बहुत दिन की अभिलाषा थी कि मेरे पास आना है। वे कहते हैं, वह अभिलाषा पूरी हो गई, आ गए। अब चले। ऐसे ही नेपाल में जाओगे; क्या पाओगे वहां ? आकाश यही है सब जगह; ' चांद-तारे यही हैं; यही आदमी हैं; यही रंग-रूप हैं; यही संसार है। दूसरे चांद-तारों पर भी अगर आदमी होगा तो सब यही होगा ! कहां जाना है ?
लाओत्से कहता है, 'लोग अपने जीवन को मूल्य दें, और दूर-दूर प्रव्रजन न करें। वहां नाव और गाड़ियां तो हों, उस राज्य में, लेकिन उन पर चढ़ने वाले न हों। वहां कवच और शस्त्र तो हों, लेकिन उन्हें प्रदर्शित करने का अवसर न हो । गिनती के लिए लोग फिर से रस्सी में गांठें बांधना शुरू करें।'
गणित ने लोगों को बहुत नुकसान पहुंचाया है। तुम एक थोड़ा सोचो, अगर तुम अंगुलियों पर ही गिन सकते हो या रस्सी में गांठ बांध कर गिन सकते हो तो तुम कितने धन की कामना करोगे ? सोचो! रस्सी पर कितनी गांठें बांधोगे ? थक जाओगे। लेकिन गिनती ने बड़ी सुविधा बना दी है— शंख, महाशंख, जो भी तुम्हें सोचना हो । गिनती ने वासना को बड़ी गति दी। जिंदगी का काम तो अंगुलियों पर गिनने से चल जाता है। और बड़ी गिनती की जरूरत नहीं है। वासना का काम नहीं चलता । वासना के लिए बड़ी संख्या चाहिए, बड़ा फैलाव चाहिए। सब संख्याएं छोटी पड़ जाती हैं; वासना का फैलाव सब संख्याओं से बड़ा है।
लाओत्से कहता है, लोग फिर से गांठें बांधने लगें रस्सियों पर, क्योंकि गणित लोगों को चालाक बनाता है। असल में, सब शिक्षा लोगों को चालाक बनाती है। शिक्षित आदमी और सीधा-सादा, जरा कठिन है। क्योंकि शिक्षा आदमी को कुटिल, होशियार, चालबाज बनाती है। शिक्षा लोगों को, दूसरों का शोषण कैसे किया जाए अपनी वासना के लिए, इसकी कला देती है।
लाओत्से कहता है, लोग फिर से अशिक्षित हो जाएं, क्योंकि शिक्षा ने कुछ दिया नहीं। लोगों का जीवन खो गया शिक्षा में; कुछ पाया नहीं ।