Book Title: Tao Upnishad Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 394
________________ ताओ उपनिषद भाग ६ जागरण का तो कोई पता नहीं है, नींद का ही पता है। उसी नींद में मीठे सपने भी देखे हैं। माना कि दुखद स्वप्न भी देखे हैं, लेकिन आदमी दुख-स्वप्नों को तो भूलता चला जाता है; मीठे स्वप्नों को याद रखता है। दुख को तो स्मृति के बाहर कर देता है; सुख की श्रृंखला को संजो लेता है। उसी की याद में जो सुख अतीत में पाया, और उसी की आशा में कि फिर-फिर उसी सुख को भविष्य में पाऊंगा, आदमी चाहता है सोया रहे। तो जो भी जगाएगा वह शत्रु मालूम पड़ेगा। सुबह की अजान, मस्जिद से उठती हुई, कर्ण-मधुर नहीं मालूम होगी, कड़वापन लगेगा। कड़वापन तुम्हारे कारण। ऐसा ही समझो कि बहुत दिन तुम बीमार रहे हो; बुखार से अभी-अभी उठे हो। मिष्ठान्न भी मीठा नहीं लगता। तुम्हारी जीभ अस्वस्थ है। मिठाई की मिठास, मिठास और मिठाई में कम, तुम्हारी जीभ पर निर्भर है। तुम उदास हो; आकाश में पूर्णिमा का चांद निकला हो, वह भी उदास लगता है। लगता है रो रहा है जार-जार। अगर तुम बहुत दुखी हो-कोई मर गया है, प्रीतम से छूट गए हो, कोई दुर्घटना घटी है-लगेगा कि चांद से आंसू टपक रहे हैं। फूल कुम्हलाए हुए दिखाई पड़ेंगे। वृक्षों में सन्नाटा होगा उदासी का। तुम जैसे होते हो वही व्याख्या तुम्हारे चारों तरफ फैल जाती है। फिर प्रीतम घर लौट आया है; तो अमावस की रात भी पूर्णमासी से ज्यादा उजाली मालूम पड़ेगी; सूखे कुम्हलाए फूलों में भी नये जीवन का आविर्भव दिखाई पड़ेगा; सूख गए पत्ते हरे मालूम पड़ेंगे। जब तुम्हारे भीतर सावन है तो सब तरफ सावन हो जाता है। जब तुम्हारे भीतर मरुस्थल है, सब तरफ मरुस्थल हो जाता है। क्योंकि तुम केंद्र हो तुम्हारे जगत के। और तुमसे ही व्याख्या उठती है।। तो जब लाओत्से कहता है कि सत्य शब्द कर्ण-मधुर नहीं होते, और कर्ण-मधुर शब्द सत्य नहीं होते, तो तुम से कुछ कह रहा है। यह सत्य के संबंध में वह कुछ भी नहीं कह रहा है; क्योंकि सत्य के संबंध में तो कुछ भी कहा नहीं जा सकता। वह स्वयं ही कहता है पहले सूत्र में ताओ तेह किंग के कि जो कहा जा सके वह सत्य नहीं है; जो नहीं कहा जा सके वही सत्य है। तो सत्य के संबंध में तो लाओत्से कुछ भी नहीं कह रहा है, तुम्हारे संबंध में कह रहा है। तुम इतने झूठ हो गए हो कि तुम्हें सत्य का स्वाद ही खो गया है। तुम इतने विपरीत चले गए हो कि सत्य तुम्हें निकट नहीं मालूम पड़ता, दूर मालूम पड़ता है। दूर ही नहीं मालूम पड़ता, दुश्मन मालूम पड़ता है। मैंने सुना है कि बर्नार्ड शॉ से उसके एक विरोधी ने कहा कि तुम मेरे संबंध में झूठी बातों का प्रचार बंद करो, अन्यथा मुझसे बुरा कोई भी न होगा! बर्नार्ड शॉ ने कहा, रुको, पहले ठीक से सोच लो। अभी मैं तुम्हारे संबंध में झूठी बातों का प्रचार कर रहा हूं, अगर मैं सत्य बातों का प्रचार करने लगू तब? बर्नार्ड शॉ यह कह रहा है कि ये तो झूठी बातें हैं तुम्हारे संबंध में, ये इतना दुख दे ही हैं। अगर सत्य बातों का प्रचार करूं तो कितना दुख न देंगी! तुम मेरी अनुकंपा अनुभव करो कि मैं तुम्हारे संबंध में सत्य बातें नहीं कह रहा हूं। तुम्हारे संबंध में कोई झूठ कह देता है। अगर वह सच में ही झूठ है तो तुम परेशान नहीं होते। उसमें कोई सचाई होगी, तभी तुम परेशान होते हो। अगर उसमें बिलकुल ही सचाई न हो तो परेशानी होती ही नहीं। उसमें जितनी ज्यादा सचाई होगी उतनी परेशानी बढ़ती जाती है। तुम बेईमान हो और कोई बेईमान कह देता है। तो तुम तलवार निकाल कर खड़े हो जाते हो, क्योंकि यह तो जीवन का सवाल हो गया। हो तुम बेईमान, और अगर यह बात फैल गई कि बेईमान हो तो बेईमानी करने की सुविधा क्षीण हो जाएगी। बेईमानी तो तभी तक कर सकते हो जब तक लोग मानते हैं कि तुम ईमानदार हो। लोग जब तक मानते हैं ईमानदार हो तभी तक तो बेईमानी की गुंजाइश है। बेईमानी के अपने पैर नहीं हैं; वह भी ईमानदारी के कंधों पर बैठ कर चलती है। झूठ के अपने कोई पैर नहीं हैं; वह भी सत्य का सहारा लेता है। तो अगर कोई तुमसे कह दे कि तुम झूठे हो, अगर तुम सच में ही झूठे हो तो तुम उबल पड़ोगे, भयंकर क्रोध का जन्म होगा। वह क्रोध ही बता रहा है कि सत्य ने चोट की। और अगर वह झूठ ही था बिलकुल तो तुम हंस कर निकल जाते। 384

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