Book Title: Tao Upnishad Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 422
________________ ताओ उपनिषद भाग ६ तो नसरुद्दीन ने कहा, अब तुम पूरी बात ही समझ लो, अन्यथा तुम्हारी उत्सुकता बढ़ती चली जाएगी। मेरी पत्नी को रात सपने में सांप दिखाई पड़ते हैं, तो नेवला ले जा रहा हूं सांपों को डराने के लिए। उस आदमी ने कहा, हद कर दी! सपने में दिखाई पड़ते हैं तो नकली हैं सांप। तो नसरुद्दीन ने कहा, यह नेवला कोई सच है? है थोड़े ही; बस, खयाल लिए जा रहे हैं। क्योंकि झूठे सांपों को डराने के लिए असली नेवले की थोड़े ही जरूरत है। और झूठे सांप से असली नेवले को मिलाओगे कैसे? झूठे सांप से तो झूठे नेवले की ही लड़ाई हो सकती है। अगर तुम्हें कोई झूठी बीमारी पकड़ जाए तो असली चिकित्सा की जरूरत है? तो और मुश्किल में पड़ोगे। झूठी अगर बीमारी पकड़ जाए तो एलोपैथ डॉक्टर के पास मत जाना, नहीं तुम बहुत झंझट में पड़ोगे। क्योंकि उसकी दवाई और जटिलता पैदा करेगी। अगर झूठी बीमारी पकड़ जाए तो उसके लिए ही संत हैं, साधु हैं, साईंबाबा हैं, वहां जाना। क्योंकि झूठी बीमारी के लिए झूठी राख की जरूरत है; वह काम करती है। असली बीमारी के लिए असली दवा की जरूरत है; झूठी बीमारी के लिए झूठी दवा की जरूरत है। जब तुम एक झूठ से लड़ते हो तब तुम दूसरा झूठ खड़ा करते हो। फिर तुम और घबड़ा जाओगे कि दूसरा भी झूठ है तो इससे भी लड़ना है, तो तीसरा झूठ खड़ा करते हो। फिर इसका कोई अंत नहीं है। फिर दर पर्त, पर्त दर पर्त झूठ बढ़ता चला जाएगा। तुम अपने ही उपद्रव में ग्रस्त हो जाओगे। नहीं, झूठ अगर है तो लड़ना नहीं है उससे, सिर्फ जानना है, जागना है। जागते ही झूठ गिर जाता है। तुम्हारी जटिलता झूठ है, वास्तविक तो नहीं। वस्तुतः तो तुम उतने ही सरल हो जितना लाओत्से। तुम्हारे प्राणों के प्राण में तो तुम उतने ही सरल हो जितना कि कोई बुद्ध पुरुष। जरा भी भेद नहीं है, रत्ती भर भेद नहीं है। क्योंकि अगर वहां भेद हो गया होगा तो फिर कोई सुधारने का उपाय नहीं है। वहां तो तुम वैसे ही सरल हो जैसे नवजात शिशु, सुबह पड़ी ओस, सांझ को निकला पहला तारा, एकदम ताजे। लाओत्से, बुद्ध और महावीर और कृष्ण की ताजगी में और तुम्हारी भीतर की ताजगी में रत्ती भर फासला नहीं है, फर्क नहीं है। तुम वही हो जो वे हैं। फासला है तो तुम्हारे ऊपर की पर्तों में है। वह तुमने जो झूठ के वस्त्र पहन रखे हैं। उन झूठ के वस्त्रों से लड़ने की कोई जरूरत नहीं; सिर्फ समझ लेना है कि वे झूठ हैं। उनको उतारना भी न पड़ेगा, क्योंकि उतारने का तो मतलब तब होता जब वे सच्चे होते। तुम हो तो नग्न ही; झूठ के वस्त्र पहने हुए हैं। उनको उतारना थोड़े ही पड़ेगा; जान लोगे, देख लोगे, उतर गए। होश काफी है। सजगता काफी है। इसलिए तो सारे बुद्ध पुरुष एक ही बात कहे चले जाते हैं : ध्यान, ध्यान, ध्यान। ध्यान का अर्थ है : तुम जाग जाओ, बस। तुम जरा होश से अपने को देखो। समझो तुम घर आए, पत्नी के लिए तुम द्वार पर ही तैयार होने लगे, तुमने ओंठों पर मुस्कान खींच ली, जो कि झूठ है। ओंठों का अभ्यास कर लिया है तो ओंठ खींच लेते हो तुम। कुछ लोग तो इतना अभ्यास कर लेते हैं कि नींद में भी उनके ओंठ ढीले नहीं होते, खिंचे ही रहते हैं। अभ्यास ज्यादा हो जाए तो हंसने की जरूरत ही नहीं रहती, बस ओंठ खिंचे ही रहते हैं। तुमने ओंठ खींच लिए हैं। अब क्या करना पड़ेगा इस झूठी मुस्कान से हटने के लिए? जरा होश करो, ओंठ वापस लौट जाएंगे अपनी जगह। होश आते ही कि तुम्हारे भीतर कोई हंसी नहीं तो क्यों ओंठ पर ला रहे हो? और तुम किसे धोखा दे रहे हो? पत्नी को? दुनिया में कोई कभी नहीं दे पाया; तुम असंभव करने की कोशिश कर रहे हो। तुम्हारे खिंचे हुए ओंठ से कुछ अंतर न पड़ेगा। बल्कि तुम्हारे खिंचे ओंठ सिर्फ इतनी ही खबर पत्नी को देंगे कि जरूर कोई अपराध करके आ रहे हो। नहीं तो हंस क्यों रहे हो? मुस्कुरा क्यों रहे हो? किसको धोखा देने की कोशिश कर रहे हो? तुम्हारी मुस्कुराहट झूठी है। तुम अपने को ही धोखा दे रहे हो। थोड़े 412

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