Book Title: Tao Upnishad Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 424
________________ ताओ उपनिषद भाग ६ कारण नहीं है। सत्य बलशाली है। झूठ की पों का क्या बल है? सत्य का दीया जला, झूठ की पर्ते तिरोहित हो गईं; जैसे अंधेरा मिट जाता है दीये के जलते। इसे अगर तुम स्मरण रख सको तो यह समस्त शास्त्रों का सार है कि तुम परमात्मा हो; थोड़े सोए हुए, थोड़े अलसा गए हो, थोड़ी झपकी खा गई; बस। थोड़ा आंखों में पानी मार लो, एक कप चाय पी लो, थोड़ा होश सम्हालो। कुछ कभी खोया नहीं है। किसी ने कभी कुछ खोया नहीं है। क्योंकि खोना संभव ही नहीं है। तीसरा प्रश्न: आप बहुधा कहते हैं कि अति पर ही रूपांतरण घटित होता है, लेकिन लाओत्से कहते हैं कि शुरू में ही रुक जाना, बात छोटी हो तभी उसे सुलझा लेना। दोनों बातों को सुन कर साधक की उलझन बढ़ जाती हैं। कृपया इसका समाधान करें। उलझन बढ़ाना ही चाहते हो तो हर चीज सुन कर बढ़ जाएगी। ऐसा लगता है उलझन की तलाश में हो, खोज रहे हो कि कहां उलझन बढ़ जाए। अन्यथा बात बिलकुल सीधी है, उलझन का कोई सवाल ही नहीं है। दोनों में कोई विरोध नहीं है। पहला कदम भी अति है और अंतिम कदम भी अति है; दोनों एक्सट्रीम हैं। पहला कदम उठाने के पहले ही रुक जाना, यह एक अति। और अंतिम कदम उठाने के बाद ही रुक सकोगे, यह दूसरी अति। इसमें भेद जरा भी नहीं है। लाओत्से भी कह रहा है कि अति पर ही रूपांतरण होगा; मैं भी कह रहा हूं, अति पर ही रूपांतरण होगा। लाओत्से कह रहा है, पहले कदम के पहले ही रुक जाना। और तुमने पहला कदम उठा लिया है, इसलिए मैं कह रहा हूं, अब आखिरी कदम उठा लो। अब तुमको लाओत्से काम नहीं आएगा, मैं काम आऊंगा। क्योंकि लाओत्से का अब तुम क्या करोगे? तुम पहला कदम तो कब का उठा चुके। कितना चल चुके संसार में! अब कोई पहला कदम उठाने का सवाल है? हजारों कदम उठा लिए, हजारों मील की लंबी यात्रा पर तुम आ चुके। तो अब मैं तुमसे कहता हूं, देर मत करो; अब पूरी ही कर लो यात्रा और आखिरी कदम उठा लो।। क्रांति या तो पहले कदम के पहले होती है या आखिरी कदम के बाद होती है, मध्य में नहीं हो पाती। क्योंकि मध्य में तुम अधकचरे होते हो। वहां क्रांति कैसे हो सकती है? या तो तब जब तुम बिलकुल सरल बालक की तरह थे, कि जटिलता तुम्हें छुई ही न थी, तुम बिलकुल कुंआरे थे, तुमने वासना जानी ही न थी, तब। और या फिर वासना को जान ही लो पूरा, उसके सब रूपों में जान लो, ताकि मन में अटका हुआ कहीं कोई भाव न रह जाए कि कुछ अनजाना रह गया। उसे जान लो सब रूपों में, शुभ-अशुभ, ताकि भर जाए मन, ताकि तुम ऊब जाओ, ताकि तुम अपनी पीड़ा से ही जागने लगो; आखिरी कदम उठा लो। कुनकुने-कुनकुने क्रांति नहीं होती। लाओत्से बिलकुल ठीक कहता है; जरा भी भूल नहीं है। लेकिन किसके काम पड़ेगी लाओत्से की बात? तुम्हारे काम पड़ेगी? तुमने काफी कदम उठा लिए हैं। कहां खोज पाओगे तुम वह आदमी जो पहला कदम नहीं उठाया है? कैसे खोजोगे उस आदमी को? लाओत्से की बात ठीक है, लेकिन काम की नहीं है। मैं जो कह रहा हूं वह काम की है। मैं तुम्हें देख कर कह रहा हूं। मैंने अभी तक एक आदमी नहीं देखा जिसने पहला कदम न उठाया हो। क्योंकि वैसा आदमी मेरे पास भी कैसे आएगा? मेरे पास आने के लिए भी काफी कदम उठा लिए हों तभी तो आ पाओगे। तो इसलिए कहता हूं, आखिरी कदम उठा लो। और बहुत देर हो गई, ऐसे भी बहुत चल लिए; कुछ ज्यादा बचा नहीं है, थोड़े कोने-कातर में कहीं पड़ा रह गया है, उसको भी निबटा लो। मेरा आग्रह यह है कि कहीं तुम आधे मन से क्रांति में मत चले जाना, नहीं तो वह जो आधा मन पीछे रह गया है, बार-बार खींचेगा। 414

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