Book Title: Tao Upnishad Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 425
________________ प्रेम और प्रेम में भेद है हमारे पास एक शब्द है : योगभ्रष्ट। उसका कुल मतलब इतना ही होता है कि किसी आदमी ने आधे में कदम उठा कर योगी हो गया। अभी संसार से परिपूर्ण रूप से तृप्त न हुआ था या अतृप्त न हुआ था। अभी संसार कुछ रह गया था मन में, कहीं वासना दबी थी, कहीं रस कायम था; अभी सोचता था, कुछ जानने को बातें बाकी रह गईं, समय के पहले उठा लिया गया; कच्चा था, पका न था। कच्चा फल किसी ने तोड़ लिया; घाव रह गया वृक्ष में भी और फल भी अधूरा रह गया। अभी रसधार बह रही थी। अभी वृक्ष से टूटने का समय न आया था। अभी परिपक्वता न हुई थी। ऐसा कोई बीच में कोई दुर्घटना के कारण हो गया। दुर्घटनाएं संभव हैं। पढ़ लिया कोई शास्त्र, हो गए प्रभावित क्षण भर को क्षण भर में कर बैठे कोई गलती, निकल पड़े घर से। अब लौटना मुश्किल; लोग हंसेंगे। और साधु-संन्यासी तरकीब जानते हैं। जब भी वे किसी को दीक्षा देते हैं तो भारी बैंड-बाजा बजवाते हैं, ताकि सबको पता चल जाए कि यह आदमी ने संन्यास ले लिया। कोई मेरे जैसा चुपचाप थोड़े ही दे देते हैं कि किसी को पता ही नहीं चलता। तुमको ही पता नहीं चलता कि तुम कैसे संन्यासी हो गए, दूसरे की तो बात अलग। न कोई बैंड-बाजा बजता, न कोई हाथी पर यात्रा निकलती, शोभायात्रा। वह तरकीब है। उसके पीछे कारण है। वह बड़ा ट्रेड सीक्रेट है। क्योंकि जब हाथी पर निकल गई यात्रा तो अहंकार चढ़ गया हाथी। अब आसानी से लौट न पाओगे। खुद पत्नी हाथ जोड़ेगी। ऐसा हुआ। मेरे एक मित्र जैन संन्यासी हैं। समझ आई कि यह तो आधे में भाग खड़े हुए। तो मैंने कहा, छोड़ दो। उन्होंने कहा, छोड़ दो? अपने बाप को पूछता हूं कि घर आ जाऊं? वे कहते हैं, अब हमारी बदनामी करवाओगे। पत्नी को पूछता हूं। पत्नी कहती है, भूल कर इस घर में कदम मत रखना। पहले छाती पीट-पीट कर रोती थी। और अब कहती है, अब बदनामी होगी। वे हाथी पर चढ़ गए। अब अपने ही लोग लेने को तैयार नहीं हैं। अब कोई लेने को तैयार नहीं है। अब जहां जाएंगे वहां पदभ्रष्ट, पतित समझे जाएंगे। वह चढ़ाना एक तरकीब है। वह तरकीब है जिससे लौटना संभव न रहे। इसलिए खूब बैंड-बाजे बजते हैं, स्वागत-समारंभ होता है, कोई बड़ी भारी घटना घट रही है। हो क्या रहा है? क्या घटना घट रही है? एक आदमी घर छोड़ कर जा रहा है; इतने शोरगुल की क्या जरूरत है? अगर समझपूर्वक जा रहा है तो खुद ही कहेगा, यह शोरगुल किसलिए? अब तक नासमझ था, अब समझ आ गई, बात खत्म हो गई! अब तक नाली में पड़ा था, क्योंकि होश न था, अब होश आ गया। शराबी रात नाली में गिर गया, सुबह होश आ जाता है तो तुम बैंड-बाजा बजा कर जुलूस निकालते हो कि अब इसको होश आ गया? अब यह नाली से उठ गया? होश आ गया, अपने आप खुद घर पहुंच जाता है। लेकिन शोरगुल मचाने के पीछे कारण है। वह कारण यह है कि तुम्हारे अहंकार को इतना फुला दिया जाए कि जब तुम खुद ही घर में जाना चाहो तो दरवाजा छोटा मालूम पड़े और कोई तुम्हें लेने को राजी न होगा फिर। खुद तुम्हारी पत्नी, तुम्हारे बच्चे हाथ जोड़ेंगे कि अब तुम ऐसी भूल-एक भूल तो यह की कि भाग गए, अब यह दूसरी भूल और न करो। सारा संसार तुम्हें रोकेगा। अब तुम्हारे अहंकार का सवाल है, इज्जत का सवाल है। तो उन संन्यासी को उनके पिता ने कहा कि आत्महत्या कर लो, लेकिन घर मत आना। हमारा भी तो कुछ सोचो। अब वे संन्यासी पड़े हैं बेमन से। वासना घर की तरफ भाग रही है; परमात्मा की याद नहीं आती, पत्नी की याद आती है। पढ़ते हैं शास्त्र; मन में संसार चलता है। और दूसरों को भी समझा रहे हैं। वे मुझसे कहते थे, मेरी तकलीफ यह है कि अब मैं दूसरों को भी यही समझा रहा हूं कि छोड़ो, कहां पड़े हो। और मैं खुद मुसीबत में हूं कि क्यों छोड़ा। यहां आकर न तो कुछ आनंद मिल रहा है, न कोई मोक्ष का स्वाद आ रहा है। और अब ऐसा लगता है कि जो मिल रहा था, शायद वही मिल सकता है, और ज्यादा मिल नहीं सकता। 415

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